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२०२८, माघ शु. १४.,दि.२९-१-१९७.
७-१०-१९९९, गुरुवार आ. व. १३ (दोपहर)
मैं बोलूं और आपको मधुर- लगे, यह मेरे हाथ में नहीं है । लगता है कि तीर्थंकरों का यह प्रभाव है, प्रथम माता का प्रभाव है जो सत्य एवं प्रिय वाणी सिखाती है, जो देव-गुरु की भक्ति सिखाती है ।
__ प्रथम माता साधु भगवंत के साथ मिलाप कराती है । मोक्षमार्ग में जो सहायता करे वह साधु ।
दूसरी माता उपाध्याय भगवंत के साथ मिलन कराती है । ज्ञान प्रदान करे वे हैं उपाध्याय । विनय एवं भक्ति के वे जीवित दृष्टान्त है।
__ तीसरी माता आचार्य भगवंत के साथ मिलन कराती है, आचार्य आचारों का पालन करते हैं ।
चौथी माता अरिहंत परमात्मा के साथ मिलन कराती है, त्रिपदी देकर ध्यान में ले जाती है ।
चार माताओं की गोद में बैठने पर पांचवी गति (मोक्ष) मिलेगा ही। . भक्ति के दो प्रकार हैं - वानरी भक्ति एवं मार्जारी भक्ति । भक्ति करते हैं, परन्तु श्रद्धा नहीं है ।
**** कहे कलापूर्णसूरि - B)
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कहे