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साधक साध्य साधन उपासक उपास्य उपासना इन तीनों का एकीकरण समापत्ति है ।
- नवपदों के सम्बन्ध में जितनी कृतियां आज उपलब्ध हैं, उन कृतियों की उन्होंने ध्यान से अनुभूति करके रचना की है। रचना की है कहने की अपेक्षा 'रचना हो गई है' यह करना उचित होगा । उनके शब्दों से उनकी साधना प्रतीत होती है ।
आचार्य पद : 'नमुं सूरिराजा सदा तत्त्व ताजा, जिनेन्द्रागमे प्रौढ साम्राज्य भाजा;
षड्वर्गवर्गितगुणे शोभमाना, पंचाचारने पालवे सावधाना' ।
सूर्योदय होने पर चन्द्रमा आदि का तेज फीका पड़ जाता है । ज्योतिष में भी जब रवियोग प्रबल होता है तब अन्य योग अशक्त हो जाते हैं । शासन में जब सूरि भगवंत प्रभावक बनते हैं तब अन्य दार्शनिक फीके पड़ जाते हैं ।
नमुं सूरिराजा, सदा तत्त्वताजा,
उनके पास नया-नया तत्त्व-ज्ञान स्फुरायमान होता ही रहता है, इसलिए 'तत्त्व ताजा' कहा ।
फलोदी में पू. लब्धिसूरि महाराज का चातुर्मास था ।
फूलचंदजी झाबक अत्यन्त ही तत्त्वप्रेमी थे । विद्वानों को विद्वद्गोष्ठी प्रिय लगती है। वे आचार्यश्री को रात्रि के समय गूढ प्रश्न पूछते । हम पौषध में होते थे तब कई बार सुनते थे । रात्रि में बारह भी बज जाते थे । तत्त्व की बातों में रात व्यतीत हो जाती थी । आचार्य ऐसे 'तत्त्व-ताजा' होते हैं । आचार्य में गुण कितने होते हैं ?
'षट्वर्ग - वर्गित' अर्थात् ६ का वर्ग - ३६; ६ x ६ = ३६. ३६ का वर्ग - १२९६; ३६ x ३६ = १२९६. आचार्य के इतने गुण होते हैं । वे सावधान होकर पंचाचार के पालक होते हैं ।
दस वर्ष की उम्र से ( हैदराबाद में रहता था तब से) मैं (कहे कलापूर्णसूरि - १ *****
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