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ॐ परम निधान अर्थात् भगवान ।
भक्त के लिए भगवान ही परम निधान हैं । निर्धन को धन और सती को पति ही परम निधान हैं ।
- सम्यकत्व के बिना नौ पूर्वो का ज्ञान भी अज्ञान है, चारित्र भी अचारित्र है और क्रिया केवल कष्ट-क्रिया है ।
. दर्शन सप्तक (अनन्तानुबंधी ४, दर्शन मोहनीय ३) के क्षय से क्षायिक एवं क्षय और उपशम से क्षायोपशमिक तथा उपशम से औपशमिक सम्यक्त्व प्राप्त होता है ।
साधक को परास्त करने के लिए मोहराजा ने इन सातों को अच्छी तरह तैयार किये हैं । • 'समकित - दायक गुरु तणो, पच्चुवचार न थाय;
भव कोडाकोडी करी, करतां सर्व उपाय.' सम्यक्त्व-दाता गुरु का कितना उपकार ? आप आजीवन कभी प्रत्युपकार नहीं कर सके उतना ।
आत्म-तत्त्व की अनुभूति करानेवाले का बदला कैसे चुकाया जा सकता है ? शरीर मेरा, वचन मेरा, मन मेरा, कर्म मेरे, इस मिथ्या धारणा को तोड़नेवाला सम्यक्त्वरूपी वज्र है । ऐसा वज्र देनेवाले को कैसे भूल सकते हैं ?
वस्त्र, मकान, शरीर आदि का सम्बन्ध मात्र संयोग सम्बन्ध ही है । जबकि आत्म-गुणों का समवाय संयोग से सम्बन्ध है । ऐसा सिखानेवाले ही नही, अनुभूति करानेवाले गुरुदेव हैं ।
. ध्वजा के स्पन्दन से वायु का पता लगता है, उस प्रकार अरूपी सम्यक्त्व उसके लक्षणों से मालुम पड़ता है । शम, संवेग, निर्वेद, अनुकम्पा, आस्तिकता इन पांच लक्षणों से सम्यक्त्व का पता लगता है ।
* 'धर्म रंग अट्ठमीजीये'
सम्यकत्व से धर्मरंग, अस्थि-मज्जावत् बनता है । सातों धातुओं में, रक्त के कण-कण में और आत्मा के प्रदेश-प्रदेश में धर्म एवं प्रभु का प्रेम व्याप्त हो जाता है; जिससे परभाव की समस्त इच्छा मिट जाती है ।
* प्रभु की पूर्ण गुण-सम्पत्ति प्रकट हो चुकी है, अपनी
कहे क
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