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है । चारित्र नहीं ले जाया जा सकता ।
क्षायोपशमिक • गुणों पर विश्वास रखने जैसा नहीं हैं । यदि उनकी सम्हाल करो तो चले भी जायें । तेल का दीपक ! बुझने में देर कितनी ? हां, रत्नों का दीपक नहीं बुझेगा । क्षायिक भाव रत्नों का दीपक है ।
जिस प्रकार आप सांप को खोज कर घर में से बाहर निकाल देते हैं, उस प्रकार मिथ्यात्व, कषायों आदि को खोज-खोजकर बाहर निकालो ।
है 'धर्मी जागृत भले और अधर्मी सोये भले'
भगवान महावीर ने यह बात जयन्ती श्राविका के एक प्रश्न के उत्तर में कही थी ।
हम सोये हुए हैं या जागृत ? सम्यग्दृष्टि जागृत कहलाता है और मिथ्यात्वी सोये हुए कहे जाते है । हम में सम्यकत्व आ गया ? नहीं आया हो तो यह मानना कि हम खुली आंखों से सोये हुए हैं।
. रोकड़ रकम व्यवहार में काम आती है, हाथ में रहा शस्त्र सैनिक के काम आता है, उस प्रकार कण्ठस्थ ज्ञान हमारे काम आता है । पुस्तक में पड़ा ज्ञान काम नहीं आता । उपयोग में आता ज्ञान ही चारित्र बन सकता है ।
'ज्ञाननी तीक्ष्णता चरण तेह.' ज्ञान की तीक्ष्णता ही चारित्र है ।
प्रतिक्षण उदय में आनेवाली मोह की प्रकृतियों का सामना करने के लिए तीक्ष्ण ज्ञान चाहिये । प्रति पल का तीव्र उपयोग आवश्यक है, अन्यथा हम मोह के सामने हार जायेंगे ।
लिखने से या पुस्तकें रखने से आप ज्ञानी नहीं बन सकते । उस ज्ञान को जीवन में उतारने से ही ज्ञानी बन सकते हैं ।
'हेम परीक्षा जिम हुए जी, सहत हुताशन ताप; ज्ञानदशा तिम परखियेजी, जिहां बहु किरिया व्याप.'
- पू. यशोविजयजी महाराज जिस समय जो क्रिया चलती हो, जो जीवन जिया जा रहा हो उस प्रसंग में आप एकाकार हो, आपका ज्ञान काम में आता हो तो ही सच्चा ज्ञान है ।
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