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है । इसीलिए तो चौबीसों घण्टे ओघा (रजोहरण) साथ रहता है । साथ रहा हुआ ओघा निरन्तर याद कराता है - 'हे मुनि ! तुझे निरन्तर समता में लीन रहना है ।
सामायिक के बार-बार स्मरण से समताभाव आता है। चौबीसों घण्टे समताभाव चालु हो तो अधिक सुदृढ बनता है ।
जिस प्रकार भगवान की स्तुति पुनः पुनः बोलने से मन भक्ति से आर्द्र बनता है ।
नौ बार 'करेमिभंते' कहां कहां आता है ?
प्रातः सायं प्रतिक्रमण में तीन-तीन बार तथा संथारापोरसी में तीन बार, कुल नौ बार हुआ ।
अन्य सब भूल जायें तो चलता है, समता भूल जायें तो कैसे चलेगा ? समता कहां से आती है ?
प्रभु भक्ति से आती है।
छः आवश्यकों में प्रथम सामायिक है । सामायिक प्रभु के नाम-कीर्तन से आता है, अत: दूसरा आवश्यक लोगस्स (नामस्तव या चतुर्विशति-स्तव) है ।
'सम' अर्थात् समस्त जीवों के प्रति समभाव । 'सम' अर्थात् समान भाव । 'आय' अर्थात् लाभ ।
सम + आय = समाय । इकण् प्रत्यय लगने से 'सामायिक' शब्द बना है । यह सब मैंने मनफरा में लिखा था । अनुभव से कहता हूं कि जो विचारपूर्वक लिखेंगे वह भावित बनेगा ।।
जिनसे ज्ञान-दर्शन-चारित्र का लाभ हो वे समस्त वस्तुएं सामायिक कहलाती हैं । एक ताले की छः चाबियां है । वे छःओं चाबियां लगाओ तो ही ताला खुलेगा । पांच चाबी लगाओ और एक सामायिक (समता) की चाबी नहीं लगाओ तो आत्म-मन्दिर के द्वार नहीं खुलेंगे, यह मेरा अनुभव है ।
समताभाव नहीं होगा तो चित्त आवश्यकों में नहीं लगेगा । छः आवश्यक छः चाबियां है ।
तीसरा अर्थ : चार मैत्री आदि भावों की प्राप्ति सामायिक है । 'सर्वज्ञकथित सामायिक धर्म' पुस्तक में इसका विस्तारपूर्वक
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कलापूर्णसूरि - १