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आप चिन्तन करो और प्रभु का हृदय में संचार होता है ।
. गायें निर्भय होकर चरती हैं, क्योंकि वे जानती हैं कि हमारा रक्षक ग्वाला यहीं है । भगवान भी महागोप हैं । हम गायें बनकर जायें अर्थात् गायों की तरह दीन-हीन बनकर भगवान का शरण लें तो भगवान रक्षक बनेंगे । हमारा भय टल जायेगा ।
छ:काय रूपी गायों के भगवान रक्षक हैं, इसीलिए वे महागोप कहलाये हैं ।
से भगवान महामाहण हैं, महान अहिंसक हैं ।
कुमारपाल भले ही महान् अहिंसक बने, परन्तु उपदेश किसका ?
गुरु के माध्यम से भगवान का ही उपदेश है न ? है भगवान निर्यामक हैं । 'तप-जप मोह महा तोफाने, नाव न चाले माने रे.'
साधना की नाव डूबती प्रतीत होती है, तब भगवान निर्यामक बनकर उसे बचाते हैं ।
खलासी की भूल हो सकती है, नाव डूब सकती है, परन्तु भगवान की शरण लेनेवाला अभी तक कोई डूबा नहीं ।
भगवान जगत् के सार्थवाह हैं, मुक्तिपुरी संघ के सार्थवाह ।
आप इस संघ में आ जायें फिर मुक्ति में ले जाने की जिम्मेदारी भगवान की ।
'भो भो प्रमादमवधूय भजध्वमेनम् ।'
देव-दुंदुभि कह रही है कि 'हे भव्यो ! प्रमाद त्याग कर आप उसकी सेवना करें ।
यह व्यवहार से प्रभु का स्वरूप हुआ । निश्चय से भगवान का स्वरूप कैसा? वह अवसर पर देखेंगे ।
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*** कहे कलापूर्णसूरि - १
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