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जैन क्षमापना करेगा ।
हम सब भगवान महावीर के सन्तान है । क्षमा हमारा धर्म है । उस मार्ग पर चलें तो ही उनके अनुयायी कहलायें ।
क्षमापना न करें, मन में शत्रुता का अनुबंध रखें तो कमठ या अग्निशर्मा की तरह वैर का अनुबन्ध भवोभव साथ चलेगा । ये समस्त बातें सुनकर क्रोध के अनुबन्ध से रुकना है ।
. आज भगवती में आया - प्रश्न : साधु को संसार होता है ?
उत्तर : पूर्व कर्मों का क्षय नहीं किया हो तो अनन्त काल तक भी साधु का जीव संसार में भटक सकता है ।
. कर्म कहता है : मैं क्या करूं ? आपने मुझे बुलाया, अतः मैं आया । सिद्ध नहीं बुलाते, अतः मैं उनके वहां नहीं जाता ।
प्रतिक्रमण ऐसे पापकर्मों को नष्ट करने की प्रक्रिया है । उस समय ही प्रमाद करें तो हो चुका । सैनिक यदि युद्ध के समय ही प्रमाद करे तो ? स्वयं तो मरे ही, देश को भी घोर पराजय का सामना करना पड़े ।
हम प्रमाद करेंगे तो हम तो संसार का सृजन करेंगे, परन्तु हमारे आश्रितों को भी संसार में जाना पड़ेगा ।
9 भगवान के प्रति यदि प्रीति जागृत हो तो भव-भ्रमण मिट सकता है ।
जइ इच्छह परमपयं, अहवा कित्ति सुवित्थडं भुवणे ।
ता तेलकुद्धरणे, जिणवयणे आयरं कुणह ॥ दो स्तवन ज्यादा बोलने से भक्ति नहीं आ जाती, परन्तु जिनवचनों के प्रति आदर होने से भक्ति निश्चल बनती है ।
जिन का प्रेम जिन-वचनों के प्रेम की ओर ले जानेवाला होना चाहिये ।
कहे कलापूर्णसूरि - १ ***
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