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भगवान राम हैं, क्योंकि आत्म-स्वभाव में सतत रमण करते हैं ।
. लोक की अपेक्षा अनन्तगुना अलोक है । वैसे अनन्त लोक + अलोकों को उठाकर कहीं फैंक दे; ऐसी शक्ति परम आत्मा के एक आत्मप्रदेश में है ।
. बार-बार बोले जाते 'देव-गुरु पसाय' का अर्थ क्या ?
यही कि जो कुछ हुआ है उसमें भगवान की कृपा है । मेरा कुछ नहीं है । हम बार-बार यह शब्द बोलते तो हैं, परन्तु जीवन के साथ हमने उसका कोई सम्बन्ध नहीं रखा । प्रत्येक कार्य की सफलता में क्या देव-गुरु याद आते हैं ? सच कहना ।
साहिब समरथ तुं धणी रे । __ पाम्यो परम आधार; मन विशरामी वालहो रे,
आतम चो आधार । आत्मा के आधार स्वरूप, मन के विश्राम स्वरूप, परम आधाररूप समर्थ साहिब जिनेश्वर देव के दर्शन किये अर्थात् सब के दर्शन किये । ऐसे दर्शन होने के बाद T.V. आदि देखने का मन होगा ? टी.वी. देखने की इच्छा हो तो समझना कि अभी तक भगवान को देखे ही नहीं हैं । (टी.वी. देखने की प्रतिज्ञा दी गई ।)
. अभय, गुणप्रकर्षयुक्त, एवं अचिन्त्य शक्तिमान भगवान हैं, परन्तु इससे दूसरों को क्या लाभ ? भगवान परोपकार करने के स्वभाव वाले भी हैं । हमारी तरह स्वार्थ में ही लीन रहनेवाले प्रभु नहीं हैं।
हमें जिस प्रकार चाय आदि का व्यसन है, उस प्रकार प्रभु को परोपकार का व्यसन है । यदि प्रभु का संग करें तो उनका व्यसन हमारे भीतर नहीं आयेगा? शराबी के साथ रहनेवाला व्यक्ति शराब का व्यसनी बने तो प्रभु का प्रेमी परोपकार व्यसनी नहीं बनेगा ? यदि न बने तो समझे कि प्रभु का संग हुआ ही नहीं ।
. अभिमान महान् व्यक्ति को भी नीचे पछाड़ता है। रावण, दुर्योधन आदि इसके उदाहरण हैं। दूसरी माता (नवकारमाता) हमारा अहंकार तोड़ती है। हमारी साधना के मार्ग को निर्विघ्न बनाती है । ३५८ ****************************** कहे
** कहे कलापूर्णसूरि - १