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* प्रश्न व्याकरण में अहिंसा के ६० नाम दिये हैं, जिनमें एक नाम 'शिवा' भी है ।
अहं तित्थयरमाया, सिवादेवी तुम्ह नयरनिवासिनी; अम्ह सिवं तुम्ह सिवं, असिवोवसमं सिवं भवतु स्वाहा ।
इसका हम क्या अर्थ करते हैं ? शिवादेवी नेमिनाथ भगवान की माता ? परन्तु इसकी अपेक्षा 'शिवा' का अर्थ करुणा =अहिंसा करें तो ? करुणा ही तीर्थंकरत्व की माता है ।
सुरत में पूज्य भुवनभानुसूरिजी को ये साठ नाम बताये । 'शिवा' शब्द बताया । वे प्रसन्न हो गये ।
- अहिंसा का यहां जो पालन करता है उसे पूर्ण अहिंसारूप सिद्धशिला प्राप्त होती है । जो धर्म का पूर्ण पालन करता है उसे मोक्ष मिलता है । कारण आया तो कार्य आनेवाला ही है । दीपक आयेगा तो प्रकाश कहां जायेगा ? भोजन आयेगा तो तृप्ति कहां जायेगी ? तृप्ति के लिये नहीं, परन्तु भोजन के लिए ही प्रयत्न करनेवाले हम धर्म के लिए प्रयत्न क्यों नहीं करते ? चलने का प्रयत्न करते रहोगे तो मंजिल कहां जायेगी ? चलते रहो, मंजिल अपने आप आ जायेगी । भोजन करो, तृप्ति अपने आप आयेगी । दीपक जलाओ, प्रकाश अपने आप मिलेगा। भक्ति करो, मुक्ति अपने आप मिलेगी।
मुक्ति-मुक्ति का जाप करें परन्तु उसके कारण का समादर न करें तो हम उस मूर्ख के समान हैं जो तृप्ति-तृप्ति का जाप तो करता है, परन्तु सामने ही रखे लड्डु खाता नहीं ।
. अंधा और लंगड़ा दोनों साथ रहें तो इष्ट स्थान पर जा सकते है, परन्तु यदि वे अलग रहें तो ?
क्रिया एवं ज्ञान साथ मिलें तो मोक्ष मिलता है, परन्तु अलग रहें तो ? मोक्ष दूर ही रहेगा ।
० तीसरी माता आज्ञापालन के लिए है । नमो अरिहंत + आणं = प्रभु की आज्ञा को नमस्कार । आज्ञा को नमस्कार अर्थात् आज्ञा का पालन करना ।
दूसरी माता ने आत्मतुल्य दृष्टि दी, परन्तु तीसरी माता ने तो आत्मतुल्य वर्तन दिया । फिर दूसरे का दुःख, अपना ही दुःख किहे कलापूर्णसूरि - १ *
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