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'पूरण मन सब पूरण दीसे ।' भक्त को सर्वत्र पूर्ण दिखता है । सिद्ध ही नही, भक्त भी स्वयं को पूर्ण रूप से देखने लग जाते हैं ।
. 'शोभा नराणां प्रियसत्यवाणी' प्रिय एवं मधुर वाणी आपकी शोभा है ।
आपकी वाणी कैसी ? वाणी से मित्रता होती है, वाणी से शत्रुता होती हैं; सभी आपके मित्र हैं कि नहीं ? कोई शत्रु नहीं हैं न ?
__ आराधना करने के लिए आने से पूर्व सब के साथ 'मिच्छामि दुक्कडं' करके आये हैं न ?
प्रथम मैत्री, फिर शुद्धि और उसके बाद साधना ।
. यदि प्रभु के साथ सम्बन्ध जोड़ना हो तो सर्वप्रथम नाम के साथ सम्बन्ध जोड़ें। हमें शीघ्रता है । सीधे ही सीमंधरस्वामी को मिलना चाहते हैं, परन्तु 'सीमंधर' यह नाम यहीं है । पहले इसके साथ सम्बन्ध जोड़ो न ? कौन रोकता है ? जो हो सकता है वह करे नहीं, उसे नहीं हो सकै वैसा कैसे मिल सकता है ?
नाम फोन है । उसके द्वारा प्रभु के साथ सम्बन्ध जोड़ा जा सकता है । राजनाद गांव में हमारे समय में डाकघर पर एक ही फोन था । लगाने के लिए वहां जाना पड़ता था । घंटा-आधा घंटा प्रतीक्षा करनी पड़ती थी । आजकल तो परिस्थिति बदल गई है। नाम लेते ही क्या आप प्रभु के साथ सम्बन्ध जोड़ते हैं ?
छ : आवश्यक पूरे जीवन में होने चाहिये यह, भूल गये अतः महापुरुषों ने प्रतिक्रमण में जोड़ दिये ।
सामायिक, चतुर्विंशतिस्तव आदि निरन्तर करने के हैं । । प्रतिक्रमण अर्थात् पाप से पीछे हटना । पाप से निरन्तर पीछे हटना है ।
. चार माताओं की बराबर सेवा करें तो पांचवे परम पिता परमात्मा का मिलन होता ही है । शर्त यही है कि हम विनयी हो । विनीत पुत्र को ही पिता का उत्तराधिकार प्राप्त होता है न ?
. परोपकार आये, उसके जीवन में सदुरु का योग होगा ही। जयवीयराय में यही क्रम बताया है ।
कहे।
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