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नहीं कर सकेगा । हम परलोक की आशा में बैठे हैं । मुक्ति वहां मिलेगी; परन्तु अनुभवी कहते हैं कि पहले यहां मोक्ष, फिर वहां मोक्ष । यहां मोक्ष नहीं तो वहां भी नहीं ।
. जब मैं दीक्षा अंगीकार करने के लिए तैयार हुआ तब घर के, परिवार के अमुक बड़े-बूढे कहते, 'अक्षय ! तुम तो महान श्रावक आनन्द एवं कामदेव से भी बढ गये । उन्होंने भी दीक्षा नहीं ली थी । तुम दीक्षा लेने के लिए तैयार हो गये हो । ऐसे तुम कौनसे बड़े हो ? क्या घर पर रहकर साधना नहीं होती ?
शास्त्रीय बातका भी मनुष्य कैसा दुरुपयोग करता है? शास्त्रों में से अपने लिए अनुकूल तर्क मनुष्य किस प्रकार ढूंढ निकालता है ? उसका यह एक नमूना है ।
- शशिकान्तभाई - आपके साथ मोक्षमें जाने का संकल्प
मन
उत्तर - साथ क्यों ? मुझसे भी पहले जाओ । पू. हेमचन्द्रसूरिजी ने कुमारपाल को अपने से पूर्व मोक्ष में भेजा ।
परन्तु मोक्ष के लिए ही साथ क्यों चाहते हैं ? अभी ही साथ ले लो न ? कौन इनकार करता है ?
साधुता के बिना सिद्धि नहीं है - यह तो आप जानते हैं न ? साधु बने बिना सिद्ध किस तरह बना जायेगा ? ।
. आराधना - साधना उत्तम हुई है, यह कैसे जाना जा सकता है ? मन की प्रसन्नता से जाना जा सकता है । प्रसन्नता बढे वह सच्ची साधना ।
. पू. पं. भद्रंकरविजयजी को 'ध्यान-विचार' नामक अलभ्य ग्रन्थ स्व-जन्मभूमि पाटन में ही मिला । पं. भद्रंकरविजयजी, अमृतभाई कालिदास आदि ने साथ मिलकर उसे 'नमस्कार स्वाध्याय' ग्रन्थ में प्रकाशित किया ।
'ध्यान-विचार' ग्रन्थ प्रकाशित करके पंन्यासजी महाराज ने अत्यन्त ही उपकार किया है । 'जप रहस्य' नामक अजैन संन्यासी प्रत्येकानन्द स्वामी द्वारा रचित पुस्तक पं. भद्रंकरविजयजी ने मुझे दी थी । जैनेतरोंने भी 'जपयोग' के सम्बन्धमें बहुत लिखा है, अनेक रहस्य बताये हैं जो इस पुस्तक से ज्ञात होता है । (कहे कलापूर्णसूरि - १ ****
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