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यायाव (गुजरात) में पूज्यश्री का प्रवेश, वि.सं. २०४७
३-१०-१९९९, रविवार आ. व. ९ (मध्यान्ह)
तीसरी धर्ममाता की गोद में आप बैठ गये हैं। देश विरति तो है न ? इतने अंश में आप बैठ गये । धर्ममाता के पास से ही चौथी ध्यान-माता के पास जा सकते हैं ।
आज ही मैंने भगवती में पढा, अविरति से क्या तात्पर्य है ? इच्छा का निरोध नहीं करना वह अविरति ।
• जीवों की उपेक्षा की वह निर्दयता कहलाती है । जीवों की अपेक्षा की वह कोमलता कहलाती है । जीवों की अपेक्षा ही विरति है।
कोई हमारे प्राण लेने आये, पिस्तोल बताये, तब हमारे भाव कैसे होंगे ? कितना भय व्याप्त होगा ? सारा शरीर कांप उठेगा ।
ऐसे समय कोई अभयदान दे तो कैसा लगेगा ? हमारे से भयभीत जीवों को जब हम अभयदान देते हैं तब उन्हें ऐसा आनन्द होता है।
अविरत सम्यग्दृष्टि जीव पाप में कभी प्रवृत्ति करे तो कैसे ? तपे हुए लोहे पर चलना पड़े तो आप कैसे चलेगें ? बस, इसी प्रकार से अविरत सम्यग्दृष्टि जीव पाप प्रवृत्ति करता है ।
******* कहे कलापूर्णसूरि - १
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