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पांच परमेष्ठी में आपको कौनसा पद चाहिये ? एकभी नहीं चाहिये, ठीक है न ? आपको तो दूसरा ही कुछ चाहिये । आपको जो चाहिये वह ज्ञानियों की दृष्टि में अत्यन्त तुच्छ है । आप तुच्छ की याचना (मांग) न करें । चक्रवर्ती जैसे आप पर प्रसन्न हों और क्या आप घर-घर भीख मांगने जैसी तुच्छ याचना करेंगे ?
हमने भव-भवमें ऐसा ही किया है ।
. ज्ञान एवं क्रियारूपी पहियोंवाले ध्यानरूपी रथ में बैठ जाओ । भगवान सारथि बनकर आपको मुक्तिपुरी में ले जायेंगे ।
* बच्चा छोटा है, परन्तु माता की गोद में हो तो क्या कोई भय है? हम छोटे थे तब गोद में थे, अतः बच सके है, अन्यथा बिल्ली उठा ले जाती और हमारा आयुष्य उस समय ही समाप्त हो जाता ।
चार माताओं की गोद में बैठ जाइये ।
कोई भय नहीं रहेगा, परन्तु माता की गोद में वही जा सकता है जो 'बालक' बने । हम पण्डित बनकर जाते है, महान बनकर जाते हैं ।
. भुज से अभी एक मुसलमान मेजिस्ट्रेट आया । वह ध्यान करता था, परन्तु थोड़ा उलझन में था, जिज्ञासु था ।
वह बोला - 'ध्यान करता हूं।' 'किसका ध्यान करते हैं ?'
'निरंजन-निराकार का ध्यान करता हूं। मैं हमारी पद्धति के अनुसार ध्यान करता हूं, परन्तु विक्षेप आते है, मार्गदर्शन प्राप्त करने के लिए आया हूं।' _ 'आप मेरी बात मानेंगे ? यदि सचमुच ध्यान की रुचि हो तो 'आकार' ध्यान से प्रारम्भ करो ।'
शंखेश्वर पार्श्वनाथ का चित्र देकर कहा, 'यहां से प्रारम्भ करो ।' 'तहत्ति' कहकर उसने स्वीकार किया । मांस-मदिरा आदि का उसके जीवन में त्याग था ही ।
नवसारी-सीसोदरा में दीक्षा के प्रसंग पर शान्तिस्त्रात्र में जैन मेजिस्ट्रेट आया । वह जैन होते हुए भी अजैनों की साधना करता था ।
सायं पांच बजे वह आया और बोला, 'गीता का पाठ करता हूं । मैंने कृष्ण को इष्टदेव बनाया हैं ।'
कहे
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