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शायरान्सका કાળાબેન મણિલાલ હરખચંદ સપરિવાર 1
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। वळवाण (गुजरात) में पूज्यश्री का प्रवेश, वि.सं. ।
४-१०-१९९९, सोमवार आ. व. १० (मध्यान्ह)
. प्रथम माता ज्ञान, दूसरी भक्ति, तीसरी विरति और चौथी समाधि देती है।
* जगतसिंह सेठने ३६० व्यक्तियों को करोड़पति बनाये । अरिहंत प्रभु के शासन में ही यह सम्भव है । ३६० महानुभावों की ओर से प्रतिदिन नौकारसी चलती थी । नव-आगन्तुक साधर्मिक को प्रत्येक की ओर से इतना मिलता था कि वह तुरन्त ही धनाढ्य बन जाता । -
पं. भद्रंकरविजयजी म.सा.ने दिया वह क्या आप भूल जायेंगे ? आप भले ही भूल जायें, पर मैं नहीं भूलुंगा ।
- सागर में छोटी सी बूंद मिले या नदी मिले, सागर उसे अपना स्वरूप ही दे देता है, उसे सागर ही बना देता है।
प्रभु के पास जो आता है उसे प्रभु अपने समान ही बना देते हैं, वे उसे प्रभु ही बना देते हैं ।
प्रभु का प्रेम अर्थात् उनकी मूर्ति का, नाम का और आगम का प्रेम ।
भक्ति को महापुरुष जीवन्मुक्ति मानते हैं । जीवन्मुक्ति मिली (कहे कलापूर्णसूरि - १ ****************************** ३४५)