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'क्या अनुभव किया ?'
'आगे की भूमिका पकड़ी नहीं जा रही । मुझे मार्ग-दर्शन चाहिये । आज तक कोई गुरु मिले नहीं ।'
'क्या आपको मेरी बात पर विश्वास है ? कृष्ण का ध्यान करोगे तो आपकी चेतना कृष्णमय बन जाती है । नरसिंह, मीरा आदि को इस रीति से ही दर्शन हुए थे ।'
'मुझे तो निरंजन-निराकार के दर्शन करने हैं ।'
• इसके लिए आपको साकार वीतराग प्रभु का ध्यान करना पड़ेगा । सरागी का ध्यान आपको सरागी बनायेगा ।
यदा ध्यायति यद् योगी, याति तन्मयतां तदा । ___ ध्यातव्यो वीतरागस्तद् नित्यमात्मविशुद्धये ॥
- योगसार मैंने उन्हें वीतराग का ध्यान बताया । वे आनन्द से नाच उठे । मैंने ऐसा आनन्द कभी देखा नहीं, उसके बाद उन्होंने साष्टांग दण्डवत् किया ।
. पटु, अभ्यास एवं आदर से ऐसे संस्कार डालो कि वे जन्म-जन्मान्तर तक आपके साथ चलें । ___ 'पट्वभ्यासादरैः पूर्वं तथा वैराग्यमाहरः'
- वीतराग स्तोत्र भक्ति, ज्ञान आदि के संस्कार ऐसे बनने चाहिये । हमारे संस्कार अभी तक ऐसे नहीं हुए, जो भवान्तर में साथ चल सकें । जैन परिभाषा में ऐसे संस्कारों को अनुबंध कहा जाता है ।
नौ दिनों के ये संस्कार आपके कहां तक स्थिर रहेंगे? सोचना ।
* शशिकान्तभाई का मनोरथ है कि सब ध्यानी बनें । मेरा मनोरथ है कि पहले साधक बनें, ज्ञानी बनें, भक्त बनें, चारित्रवान् बनें, फिर ध्यानी बनें । आ गई न चारों माताएं ?
ज्ञानी : वर्णमाता - वर्णमाला से भक्त : पुण्यमाता - नवकार से चारित्रवान् : धर्ममाता - अष्ट प्रवचन माता से ध्यानी : ध्यानमाता - त्रिपदी से बना जाता है ।
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