________________
बढवाण (गुजरात) में पूज्यश्री का प्रवेश, वि.सं. २०४७
२-१०-१९९९, शनिवार
आ. व. ८ (प्रातः)
प्रभु के नाम अनन्त है, क्योंकि गुण अनन्त है, शक्तियां अनन्त है । प्रत्येक नाम एक-एक गुण एवं शक्ति का परिचायक है ।
पू. आनन्दघनजीने कहा है - "एम अनेक अभिधा (नाम) धरे, अनुभव-गम्य विचार ।
जे जाणे तेने करे, आनंदघन अवतार ॥' • हमारी जीभ विचित्र है, इसे खाने के लिए मधुर भोजन चाहिये, परन्तु बोलने के लिए कड़वा चाहिये । सुभाषितकार ने कहा है -
___ 'शोभा नराणां प्रिय सत्यवाणी' मनुष्य की शोभा, रूप या आभूषणों से नही, सत्य एवं मधुर वाणी से है ।
कोई भी व्यक्ति वाणी से पहचाना जाता है । इन्द्रभूति ने भगवान महावीर स्वामी को किस प्रकार पहचाना ? वाणी से पहचाना ।
प्रिय एवं सत्य वाणी बोलना एक प्रकार से सरस्वती की आराधना है । कटु एवं असत्य वाणी बोलना सरस्वती का अपमान है। कहे कलापूर्णसूरि - १ ***
१******************************३२३