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करेंगे तब सच्चा स्तोत्र बोल सकेंगे । करोड़ों बार स्तोत्र बोलते रहोगे तब जाप की योग्यता प्राप्त कर सकोगे । करोड़ों बार जाप करोगे तब ध्यान लग सकेगा और करोड़ों बार ध्यान करने पर लय की (तन्मयता की) भूमिका तक पहुंच सकोगे ।
. पू. भद्रंकरविजयजी कितनी ऊंची कक्षा के साधक थे ? फिर भी उन्होंने प्रतिक्रमण आदि आवश्यकों का त्याग नहीं किया । क्यों नहीं किया ? उन्हें इनमें भी ध्यान की ही पुष्टि प्रतीत हुई ।सच्चा ध्यानी प्रतिक्रमण आदि से तो ध्यान को पुष्ट बनाता ही है, परन्तु आहार, विहार आदि से भी ध्यान को परिपुष्ट करता है।
वांकी तीर्थमां आपेली वाचनानुं पुस्तक गम्युं, मझानी सामग्री पीरसी छे. विगतो क्यांक क्यांक अधूरी लागे छे.
दा.त. सोलापुरना चोमासानी वात छे. त्यां व्याख्यानमां पर्युषण पछी व्याख्यान बंधनी वात छे. पछी शुं थयु ए जिज्ञासा वणसंतोषायेली रहे छे.
- आचार्य विजयप्रद्युम्नसूरि
शांतिनगर, अमदावाद.
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******************************कहे कलापूर्ण