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पूर्ण बनता है, अक्कड़ पर्वत नहीं ।
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प्रभु का नाम सुख देता है । किस तरह ? प्रभु के नाम में प्रभु के गुण और प्रभु की शक्ति छिपी हुई है, जब हम उस नाम के द्वारा प्रभु के साथ एकाकार बन जाते हैं, तब प्रभु के गुणों तथा शक्तियों का हमारे भीतर अवतरण होता है ।
जिस तरह पुष्प की सुगन्ध तेल में आती है, उस तरह प्रभु के गुणों की सुगन्ध हमारे भीतर आने लगती है ।
इत्र की सुगन्ध रूई में भर कर घूमने वाले आप प्रभु के नाम के द्वारा प्रभु के गुण संक्रान्त किये जा सकते हैं, इतनी बात नहीं समझेंगे ?
✿ बचपन से ही मुझे प्रभु-भक्ति अत्यन्त प्रिय है । कई बार तो प्रभु-भक्ति में चार-पांच घण्टे बीत जाय, भोजन के लिए बुलाने आना पड़े, ऐसा भी बनता था ।
एक बार आप भक्ति का आनन्द लेंगे तो उसे प्राप्त करने के लिए आप बार-बार लालायित होंगे ।
✿ बुद्धि में अहंकार ज्ञान का अजीर्ण है । अहंकार के द्वारा ज्ञान के अजीर्ण को जाना जा सकता है । नम्रता के द्वारा जाना जा सकता है कि ज्ञानामृत का पाचन हो गया है ।
प्रभु महान दानवीर हैं । जो मांगे वह देने के लिए तैयार हैं परन्तु हम ही मांग नहीं सकते । हम इतने कंगाल हैं कि क्षुद्र एवं तुच्छ के अलावा दूसरा कुछ मांगना सीखे ही नहीं हैं । जिन्हें प्रभु से मिला है, उन्होंने गाया है 'गई दीनता अब सब ही हमारी, प्रभु तुझ समकित दान में । आतम अनुभव रसके आगे आवत नहीं कोई मान में '
प्रभु ऐसा देते हैं कि जिससे दीनता, तुच्छता आदि दुम दबाकर भागती हैं
✿ 'पूजा कोटि सम स्तोत्रम्' इसका अर्थ यह नहीं है कि स्तोत्र बोल दें तो पूजा आ गई, क्योंकि पूजा से स्तोत्र बढ कर होता है । इसका रहस्य यह है कि करोड़ों बार पूजा
कहे कलापूर्णसूरि १***
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