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गोचरी लाभ लेता हुआ भक्त-गण, वढवाण, वि.सं. २०४७
| कंचनलाल गभरूचन्द (चाणस्मा)द्वारा आयोजित
__ नवकार जाप (आराधक ४०० पुरूष)
३०-९-१९९९, गुरुवार
प्रथम दिन
से कौनसी शक्ति है नवकार में जो भवसागर से पार उतारती है ? जो अरिहंत, सिद्ध आदि में तारने की शक्ति है वह समस्त शक्ति सामूहिक रूप से नवकार में एकत्रित है । इसी लिए नवकार शक्ति का स्रोत है । तारकता की शक्ति टुंस-टुस कर उसमें भरी हुई है।
* संसार मधुर लगता है, परन्तु सचमुच मधुर नहीं है । नाम मात्र का मधुर है । नमक को गुजराती में हम 'मीठा' कहते हैं, परन्तु वह मीठा थोड़े ही है ? बराबर यह मीठे (नमक) के समान संसार है । नाम 'मीढुं' परन्तु स्वाद कड़वा ।
- नवकार अर्थात् प्रभु का मंत्रात्मक देह । प्रभु का अक्षरमय शरीर ।
है जो अपनी आत्मा को सर्व में और सर्व को अपनी
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कह