________________
श्री के दर्शनार्थ आतुर लोगों की भीड । सुरेन्द्रनगर, दि. २६-३-२०००
SHAS
१-९-१९९९, बुधवार
भा. व. ६
* पालन करने में भले कष्टदायी हो, परन्तु जिसका फल लाभदायी हो वहां कष्ट नहीं लगता । व्यापारी को व्यापार में, किसान को खेती में, मजदूर को मजदूरी में कष्ट होता है, फिर भी सामने लाभ प्रतीत होने से कष्ट नहीं लगता । इसी प्रकार से साधु को भी मोक्ष का लाभ दिखने से कष्ट नहीं लगता ।
• लखपति का लक्ष्य करोड़पति बनने का, करोड़पति का लक्ष्य अरबपति बनने का होता है, उस प्रकार श्रावक का लक्ष्य साधु बनने की ओर एवं साधु का लक्ष्य सिद्धि की ओर होना चाहिये । ऐसा न हो तो साधक उस स्थान पर भी रह नहीं सकता । श्रावक को श्रावकत्व में या साधु को साधुत्व में यदि बना रहना हो तो भी अगला लक्ष्य होना ही चाहिये ।
. श्रावक की उत्कृष्ट भूमिका की अपेक्षा भी साधु की जघन्य भूमिका में अनेक गुनी अधिक विशुद्धि होती है। जितनी शुद्धि अधिक होगी, उतना आनन्द अधिक होगा । बारह महिनों में ही साधु अनुत्तर विमान के देवों को भी प्रसन्नता में जीत लेता है । फिर तो जो आनन्द बढता रहे उसका वर्णन करने के लिए उपमा नहीं है।
****************************** २२७