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कपड़ों में से मैल निकलने पर उज्ज्वलता बढती है, उस प्रकार मन में से अशुद्धि नष्ट होने पर प्रसन्नता बढती है । यही सच्चा आनन्द है, घर का आनन्द है ।
. बाह्य तप पहले क्यों ? आवश्यक क्यों ? अभ्यन्तर तप को बल प्रदान करने वाला बाह्य तप है। मैं मेरे अनुभव से कहता हूं कि जिस दिन उपवास आदि किये हों, उस दिन साधना में ज्यादा वेग आता है।
. साधु को आहार की लोलुपता नहीं होती । वे केवल साधना के लिये आहार ग्रहण करते है । वे भोजन इस लिए करते है कि इन्द्रियां शिथिल न हो जायें, सहायक धर्म नहीं मिटे, सहनशीलता घट न जाये, और स्वाध्याय में हानि न हो ।।
इच्छानुसार भोजन (गुलाब जामुन, रसगुल्ले आदि) प्राप्त हो तो ही ग्रहण करूंगा, ऐसा अभिग्रह नहीं हो सकता । यह तो आसक्ति कहलाती है।
. हम अपने शिष्य परिवार को जैसा बनाना चाहते हों, वैसे पहले हमें बनना पड़ेगा । आप एकासणा, स्वाध्याय, संयम, सेवा आदि गुणों से विभूषित शिष्य चाहते हों तो आप पहले ये गुण अपने भीतर उतारें ।
. गोचरी की आठ पद्धतियां : १. ऋज्वी (सीधी) : क्रमशः सीधे गली में जाना, नहीं
मिले तो पुनः स्थान पर । २. गत्वा प्रत्यागति : गली के दोनों ओर । सीधे जाकर
पुनः सामने की ओर । ३. गोमूत्रिका : साम-सामने गोमूत्र की धार के आकार में
घरों में जाना । ४. पतंगवीथी : पतंगे की तरह अनियत घरों में जाना । ५. पेटा : सन्दूक के समान चौरस आकार में घरों में जाना ।
अर्धपेट : आधे सन्दूक के आकार में घरों में जाना । अभ्यन्तर शंबुक : गांव के भीतर से प्रारम्भ करके बाहर के घरों में आना ।
बाह्य शंबुक : बाहर से प्रारम्भ करके भीतर पूरा करना । * दस प्राणों में आयुष्य जाये तो नौ प्राण निरर्थक । वह
** कहे कलापूर्णसूरि - १
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