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* गाडी में बैठने के बाद आपने क्या पुरुषार्थ किया ? फिर भी आप मुंबई से यहां आ गये न ?
भगवान के श्रुत-चारित्र धर्म की गाडी में बैठ जाओ । स्वयमेव मुक्तिनगरी में पहुंच जायेगें । हमें सिर्फ उसमें बैठने का प्रयत्न करना है। सिर्फ समर्पित हो जाना है। बाकी सब कुछ भगवान सम्हाल लेंगे ।
सागर में तूफान आता है तब नाविक का मानना पड़ता है, वे कहे जैसे करना पड़ता है। उसी तरह मोह के तूफान में देवगुरु की बात माननी पड़ती है ।
मेघकुमार को दीक्षा ग्रहण करने की प्रथम रात्रि को ही विघ्न उत्पन्न हुआ, तब उन्होंने भगवान महावीर की बात मानी, जिससे उनका जीवन-रथ उन्मार्ग पर जाता बच गया । जो भगवान को जीवन-सारथि बनाता है उसे कहीं भी इधर-उधर भटकना नहीं पड़ता ।
संयम से हिंमत हारे हुए निराश मेघमुनि में भगवान महावीर ने आशा का संचार किया, भगवान ने उनमें हिंमत भर दिया, अनुकूलता की अभिलाषा के स्थान पर प्रतिकूलता के प्रति प्रेम जगाया ।
सुखशीलता ने संसार में हमें डुबाया है। सहनशीलता ने संसार से उद्धार किया है । पूर्व जन्म में क्या सहन किया था वह भगवान ने मेघकुमार को याद कराया । एक योजन का मांडला बनाया, जिसमें दूसरे जीवों का विचार किया । दूसरों के विचार से ही धर्म शुरू होता
उस हाथी का एक गुण ध्यान में रखने योग्य है - कि उसने नीची दृष्टि किये बिना आगे पांव नहीं रखा ।।
मेघकुमार के जीव ने खरगोश (शशक) को बचाया था । सेचनक ने हल्ल-विहल्ल को बचाया था ।
हाथी में इतना विवेक आने का कारण कर्मविवर, तथाभव्यत्व का परिपाक था ।।
जीव भगवान को प्रिय हैं। जीवों को प्रिय बनायें तब हम भगवान के प्रिय बन ही जाते हैं। उसे बहुत बड़ा इनाम मिलता है।
कहे कलापूर्णसूरि - B)
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