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Nume
वळवाण (गुजरात) ज्याश्रय में पूज्यश्री, वि.सं. २०४७
२४-९-१९९९, शुक्रवार
भा. सु. १४
जल के तीन गुण । १. प्यास बुझाना । २. मलिनता मिटाना । ३. दाह मिटाना ।
पहले के जल में ऐसे गुण थे, अब नहीं है, ऐसा नहीं हैं । अमुक गांव का जल कार्य करे, दूसरा कार्य न करे, ऐसा भी नहीं है।
चौथे आरे में जल कार्य करता था, अब नहीं करता । चौथे आरे में जल पिया जाता था, अब पेट्रोल पिया जाता है, क्या ऐसा है ? भगवान की वाणी भी जल तुल्य है ।
१. तृष्णा की प्यास मिटाती है । २. कर्म की मलिनता नष्ट होती है । ३. कषायों के दाह का शमन करती है।
जल तो अग्नि के सम्पर्क से फिर भी गर्म होता है, परन्तु यह जिनवाणी या प्रभु कभी गर्म नहीं होते ।। . जल की तरह प्रभु एवं प्रभु की वाणी भी चौथे आरे की तरह आज भी अपना कार्य करती ही है। राग-द्वेष से मन ग्रस्त (२९० ****************************** कहे कलापूर्णसूरि - १)