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गया था । मैं कुछ नहीं बोला । क्या हुआ ? पेट साफ हो गया ।
गोचरी वापरते समय सु... सु..., चब... चब... आदि आवाज नहीं आनी चाहिये । एकदम शीघ्रता से नहीं वापरे । अधिक विलम्ब भी न करें। कोई वस्तु नीचे गिराये नहीं ।
जोग में तो आप ध्यान रखते हैं क्योंकि दिन पड़ने का भय रहता है । सदा ऐसा ही होना चाहिये । इस कारण ही जोग हैं ।
वापरते समय मन से स्वाध्याय-चिन्तन आदि किया जा सकता है । पूज्य देवेन्द्रसूरिजी में देखा - यहां से वहां मात्रु करने जायें तो भी स्वाध्याय चालु रहता । वे एक भी मिनिट बिगाड़ते नहीं थे । इस कारण ही वे नित्य तीन-चार हजार गाथाओं का स्वाध्याय कर सकते थे ।
भक्ति :
भगवान को जगत् को पावन बनाने का शौक है ? जैसे आपको मदिरा-तम्बाकू का शौक है ।
ज्ञानी कहते है - 'हां, उन्हें शौक है । कब से शौक है ? प्रथम से ही, निगोद से ही शौक है। हम सबको स्वार्थ का व्यसन है। भगवान को परोपकार का व्यसन है । 'आकालमेते परार्थव्यसनिनः ।'
निगोद के समय भी परोपकार चालु हो तो तीर्थंकर के भव में, जब शक्तियां पराकाष्ठा पर पहुंची हों, तब परोपकार क्यों न करें ?
दान का व्यसन हो और पास में बहुत पैसे हों तो कौन दान नहीं करता ? ओटमलजी (मद्रास) (ओटमलजी कपूरचंदजी, राजस्थान में केशवणा वाले । इनके आग्रह से ही पूज्यश्री केशवणा में पधारे थे । १६-०२-२००२ को वहीं देहान्त हुआ) यहां बैठे हैं । आज ही इन्होंने दो लाख का दान किया ।
. भोजन करते समय आप रोटी, सब्जी, मिठाई आदि जिसका नाम लेते हैं, वह वस्तु आपको मिल जाती है न ? जिस व्यक्ति को आप बुलाते है, वह व्यक्ति उपस्थित हो जाता है न? तो परोपकार-परायण भगवान का आप नाम लो तो वे उपस्थित क्यों न हों ? नाम से प्रभु सामीप्य की अनुभूति होती है ।
****** कहे कलापूर्णसूरि - 3
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