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भक्ति
जैन दर्शन में भक्ति सूत्र कौनसा है ? यह मत पूछो । कौनसा सूत्र भक्तिसूत्र नहीं है ? यह पूछो । समस्त सूत्र भक्ति सूत्र हैं, क्योंकि सभी भक्ति उत्पादक है ।
जगचिन्तामणि में नाम आदि चारों प्रकार से अरिहंत हैं । नाम दो प्रकार से १. सामान्य अरिहंत - जगचिन्तामणि आदि । २. विशेष- ऋषभ आदि रिसहसत्तुंजि आदि ।
स्थापना - सत्ताणवई सहस्सा... तिअलोए चेइए वंदे, तीनों लोकों के बिम्बों को वन्दन / चैत्य अर्थात् जिन - प्रतिमा, जिनालय । तीन लोकों के चैत्यों (जिनालयों) की संख्या :
९७ हजार, ५६ लाख, ८ करोड, ३२सौ और बयासी । द्रव्य जिन
ती आणगइ । तीनों काल के जिनेश्वरों को वन्दन । भाव जिन
संपइ जिणवर वीस ।
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जेमना हृदयमां हरक्षणे वीतराग परमात्मा श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथनी अविस्मरणीय भक्ति हती अने जेमना शास्त्रीय रागे गवाता स्तवनो सांभळवाथी आनंदनी अनुभूति थती हती ।
प्रभु - प्रेमना प्याला पीवरावती दिव्य वाणी अने जेमनी वाचना द्वारा प्रगट थयेल ग्रन्थ (कहे कलापूर्णसूरि) द्वारा वांचनारना हृदयमां प्रसन्नता प्रगयवनार तथा भीतरमां भगवाननो आविष्कार करावी भक्ति द्वारा आत्मामां समाधिनुं बीज रोपावनार आपणा सौना महान उपकारी एवा परम गुरु आचार्य भ. कलापूर्णसूरीश्वरजी अचानक आपणने साची दिशाओ बतावी, प्रभु आज्ञापालक बनावी मोक्ष-मार्गे श्री सीमंधर स्वामी पासे चाल्या गया.
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अहिंसा महासंघ
द : बाबुभाई कडीवाळा
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******** कहे कलापूर्णसूरि