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वाली पूज्यश्री का आशीर्वाद ग्रहण करते हुए दीपचंद गाडी, साथ में
केशुभाई पटेल, धीरुभाई, महासुखभाई आदि, दि. २६-३-२०००
४-९-१९९९, शनिवार
भा. व. ९
मा.
. सिद्धान्तों का स्वाध्याय बढने पर संयम की शुद्धि एवं स्थिरता बढती है, भगवान के साथ अभेद-भाव से मिलन होता है । चारित्र मतलब प्रभु का मिलन । सन्त एवं योगी प्रभु के साथ मिल सकते है । जाण चारित्र ते आतमा, शुद्ध स्वभावमां रमतो रे । लेश्या शुद्ध अलंकर्यो, मोह वने नवि भमतो रे ॥ ऐसे चारित्र तक किस प्रकार से पहुंचा जा सकता है ?
ज्ञान के अनुसार श्रद्धा, श्रद्धा के अनुसार चारित्र, चारित्र के अनुसार ध्यान और ध्यान के अनुसार भगवान मिलते हैं ।
साधनों में न्यूनता रखते हैं, इसीलिए ही भगवान नहीं मिलते ।
चले बिना, लक्ष्य (मंजिल) कैसे आयेगा ? खाये बिना तृप्ति कैसे मिलेगी ? सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र प्रभु-प्राप्ति का उपाय है। यह उपाय न करें तो प्रभु कैसे मिलेंगे ? मार्ग तो मिल गया, परन्तु चलना तो पड़ेगा ही न ?
दीक्षा ध्येय की समाप्ति नहीं है, साधना की पूर्णाहुति नहीं है, सचमुच तो साधना का प्रारम्भ है ।
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****************************** कहे