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है - मृत्युंजयी मंत्र । मृत्यु नहीं होती, यह बात नहीं है, नवकार से मृत्यु में असमाधि नहीं होती । समाधि में मरना अर्थात् मृत्यु पर विजयी होना ।
नवकार का जाप तो फलदायी होगा यदि आप काले कार्य और काला धन्धा नहीं करो ।
(आगन्तुक लोगों को नवकारवाली गिनने की प्रतिज्ञा दी गई)
समस्त जैन संघ माटे जे घेधुर वडला समान हता, जेमनी हाजरी मात्रथी जैन संघ सुखसातामां हतो, जेमना दर्शनमात्रथी भवोभवना पातिकनो भूक्को बोलाई जतो हतो, जमना नामस्मरणमां प्रभुभक्तिनी अनुभूति थती हती, जेमनुं नाम श्रवण थतां ज दूरदूर रहेलाने पण प्रभुमस्तीनी अने परम अध्यात्मभावनी अनुभूति थवा मांडती हती, जेमना रोमेरोममां जैनशासन हतं, जेमना श्वासोच्छ्वासमां जीवमात्र प्रत्ये परम मैत्रीपूर्ण करुणा हती । कारण के जेमना हृदयमां दरेक धबकारे प्रभुना साक्षात्कारे ध्वनि प्रगट थतो हतो ने जेमना प्रत्येक पलकारे प्रभु नयनो द्वारा हैयामां आवी सर्व आत्मप्रदेशव्यापी थता हता । विशेष शुं लखवं..? जेमनामां एकबाजु परमात्माना वासनी सुवास हती, तो बीजी बाजु जीवमात्र प्रत्ये छलकती करुणा हती । ए पूज्यपादश्रीनी दया हवे याद ज करवानी रही ! हजी मन मानतुं नथी, उंडे उंडे एम थया करे छे आ समाचारने बदले अफवा ज होय, तो केवू सारुं !
जीवमात्रनी वेदना जेनी संवेदना हती, एवा पूज्यपादश्रीना देवअतिथि बनवाना समाचारथी अकल्प्य वेदना अनुभवी रह्यो छु। आप सहना तो छत्र, तारणहार, सर्वस्व हता । जे मारा पर पण पूज्यपादश्रीनो जे अनन्य अनुग्रह वरस्यो छे ते हजी पण हृदयपट परथी भंसातो नथी। आवा अप्रमत्त अध्यात्मयोगी पूज्यश्री तो आ पांचमा आरामां पण चोथा आरानी आराधना करी-करावी जीवनने धन्यतम बनावी गया । पण आपनुं ! अमाउं! आ समस्त जैन संघर्नु हवे मातृवात्सल्यदायक शरण कोर्नु? . खरेखर ! वेदनाथी कलम अटकी गई छे ।
- पं. अजितशेखरविजयनी वंदना । म.सु. ४, बोरिवली (पूर्व), मुंबई. लग
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