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भूमिका है।
महाराजा कुमारपाल क्रोधित हो गये । दूसरे दिन आम्रभट्ट उनकी अप्रसन्नता जान गया ।
राजा - 'क्यों इतना दान ?' आंबड - 'आप नहीं, यह दान मैं ही कर सकता हूं ।' 'क्यों ?' महाराजा क्रोध से आगबबूला हो उठे ।।
'आप तो देथली के ठाकरड़े त्रिभुवनपाल के पुत्र हैं और मैं अठारह देशों के स्वामी महाराजा कुमारपाल का दास हूं । मैं यदि दान नहीं करूंगा तो कौन करेगा ?'
राजा का क्रोध शान्त हो गया ।
राजा के सेवक में दासत्व की इतनी खुमारी हो तो हमें भगवान के दासत्व की कितनी खुमारी होनी चाहिये ? दासत्व की खुमारी हो तो चैत्यवन्दन आदि क्रिया तुच्छतापूर्वक नहीं होती ।
अन्यत्र हमें रस आता है, परन्तु भगवान की भक्ति में ही रस क्यों नहीं ? कहां गई दासत्व की खुमारी ?
भक्ति :
इन्द्रभूति भगवान के शिष्य बने और त्रिपदी के द्वारा अन्तर्मुहूर्त में द्वादशांगी बनाई । वह शक्ति भगवान के द्वारा ही प्रकट हुई । पूर्व अवस्था में कहां थी यह शक्ति ? भगवान के प्रभाव से ही ईर्ष्या, मान, अविरति, क्रोध, प्रमाद आदि दोष नष्ट हो गये ।
___ चंडकौशिक में अपने आप आठवे देवलोक में जाने की क्या शक्ति थी ? कि भगवान के प्रभाव से शक्ति उत्पन्न हुई ?
बीज में वृक्ष बनने की शक्ति है तो बनाओ वृक्ष को कोठी में रख कर । जैसे बीज के लिए धरती आवश्यक है, उस प्रकार भक्त के लिए भगवान आवश्यक है ।
भगवान के प्रभाव से ही हम संसार के पथिक मुक्ति के पथिक बन सकते हैं । ___ अब आप ही सोचो - उपादान प्रबल है कि निमित्त ?
चैत्यवन्दन रह जायेगा तो जोग में दिन जायेगा, इस भय से चैत्यवन्दन आप चूकते नहीं है, परन्तु क्या आपने कभी सोचा है कि जो चैत्यवन्दन भूल जाने से दिन पड़ता हो, उसमें कितने रहस्य कहे कलापूर्णसूरि - १ ****************************** २२५)