________________
प्रवचन फरमाते हुए पूज्यश्री, सुरेन्द्रनगर, दि. २६
३१-८-१९९९, मंगलवार
भा. व. ५
• वैद्य रोगी की स्थिति जान कर औषधि देता है । रोग की अवस्था में जो औषधि शुरू हो, वह स्वस्थ होने पर बंद हो जाती है और स्वस्थता में जो शुरू हो, वह रोगी की अवस्था में बंद हो जाती हैं ।
भगवान भी जगत् के धन्वन्तरी वैद्य हैं ।
हम जैसे रोगियों को सामने रखकर नियम बनाये गये हैं । किसी समय जिसका विधान हो तो किसी समय उसका निषेध भी हो सकता है। . __'संयम खप करता मुनि नमिये, देशकाल अनुमाने ।'
मुनि भी देश-काल के अनुसार चलें । इस समय उत्सर्ग का वर्णन चल रहा है। गीतार्थ द्रव्य-क्षेत्र आदि के अनुरूप नियमों में परिवर्तन भी कर सकते है ।
" अशुभ निमित्तों से दूर रहें तो ही हम अशुभ भावों से दूर रह सकते हैं । इसीलिए तीर्थंकर स्वयं भी गृहस्थ जीवन का त्याग (अशुभ निमित्तों का त्याग) करके दीक्षा अंगीकार करते हैं ।
भगवान के लिए आवश्यक है तो क्यारे लिए नहीं ? श्रावक कहे कलापूर्णसूरि - १ *****
******************************२२३