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उत्तम समय हो, निरन्तर ज्ञान आदि का अभ्यास - संस्कार हो तो शिष्य उसी जन्म में मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं । उसका लाभ गुरु को मिलता है ।
___ ऐसे सद्गुरु शासन के श्रृंगार हैं । शिष्यो में जिन-शासन का प्रेम बढा कर वे महान कार्य करते हैं ।
शोभायात्राएं आदि यही कार्य करते हैं - शासन के प्रति अनुराग उत्पन्न कराने का । गुणानुरागी मध्यस्थ जीवो में ऐसा अनुराग उत्पन्न होता हैं । _ 'यह शासन भव्य हैं, सुन्दर हैं । देखनेवाले के मन में ऐसे विचार आये तो धर्म का (सम्यक्त्व का - मोक्ष का) बीज उनमें पड़ गया मानो ।
___ कई व्यक्तियों को एकबार के दर्शन, मिलन, श्रवण से सदा आने का मन होता है।
वि. संवत् २०२६ में नवसारी - मधुमती में वर्षावास था । पू. देवेन्द्रसूरिजी म.की निश्रा थी । एक 'सेल टैक्स' अधिकारी ने नित्य चलते 'योगदृष्टि समुच्चय' के व्याख्यान सुने, वे उन्हें पसन्द आये। फिरतो वे नित्य अचूक आते ही । नौ से साढे दस व्याख्यान सुनने के लिए ही वे खास कार्यालय में टिफिन मंगवाते । उन्हें ऐसा लगा कि गीता आदि की ही बातें यहां सुनने को मिलती हैं ।
वर्षावास (चातुर्मास) परिवर्तन उनके निवास पर ही किया । उस प्रसंग पर उन्होंने अपने पुत्रों को बाहर से बुलवाये ।
जंबूसर के के. डी. परमार को भी इसी प्रकार से धर्म प्राप्त हुआ हैं । उन्हें पू.पं. मुक्तिविजयजी म. के समागम से धर्म प्राप्त हुआ हैं । वे अत्यन्त ही गुणानुरागी हैं। एक बार पू. मुक्तिविजयजी म. वि. संवत् २०२५ में उन्हें मेरे पास ले आये । उनमें भक्ति - योग था ही । उन्हें स्तवन आदि पसन्द आयें । आज तो वे दृढ श्रद्धालु हैं। जैन धर्मावलम्बी भी नहीं बोल सके ऐसा वे सुंदर बोलते हैं । हम जब जंबूसर गये तब उन्होंने ही सब लाभ लिया था ।
उत्तम शिष्यों के शिष्य भी प्रायः उत्तम निकलते हैं । इस परम्परा को चलाने में गुरु निमित्त बनते हैं ।
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** कहे कलापूर्णसूरि - १
कहे