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में होगी ।, क्योंकि पूरा देह एक है, उसी प्रकार से जीवास्तिकाय के रूप में हम एक हैं । आत्मा असंख्य-प्रदेशी है, उस प्रकार जीवास्तिकाय अनन्त प्रदेशी है। जीवास्तिकाय समस्त जीवों का संग्रह है । एक भी जीव बाकी रहे तब तक तो जीवास्तिकाय नहीं ही कहा जायेगा, परन्तु एक जीव का एक प्रदेश बाकी रहे तब तक भी जीवास्तिकाय नहीं कहा जायेगा । यह जीवास्तिकाय एक है ।
जीवास्तिकाय का स्वरूप : द्रव्य से अनन्त जीव - द्रव्य, क्षेत्र से लोकाकाश व्यापी; काल से नित्य, अनादि-अनन्त; भाव से अरूपी वर्ण आदि से रहित ।
जीवास्तिकाय का लक्षण : उपयोग । उपयोग चेतना लक्षण से जीव एक ही है। ये पढे बिना पडिलेहन, जयणा आदि सच्चे अर्थ में नहीं आती । जब तक जीवास्तिकाय के इस पदार्थ को आत्मसात् न करें, तब तक संयम नहीं पाला जा सकता ।
समुदाय, समाज, देश, मनुष्य के रूप में हम एक हैं । आगे बढ कर जीव के रूप में हम सब एक हैं । दृष्टि अत्यन्त विशाल बनानी पड़ेगी। समस्त जीवों को समाविष्ट कर ले वैसी विशाल दृष्टि बनानी पड़ेगी।
भगवन् ! मैं मूढ हूं। हित-अहित से अनभिज्ञ हूं। तेरी कृपा से अहित को जान कर उससे रुकू । आप ऐसा करें कि मैं समस्त जीवों के साथ उचित प्रवृत्ति वाला बनूं ।
जीवास्तिकाय एक है। इसमें कर्मकृत भेद नहीं आता । सिद्धसंसारी समस्त जीवों को जोड़ने वाला जीवास्तिकाय है ।
शब्द, रूप, रस आदि भी नास्तित्व रूप से आत्मा में हैं ।
एक प्रदेश भी कम हो तो जीवास्तिकाय नहीं कहलायेगा, तो हम यदि एक भी जीव को हमारी मैत्री में से बाकी रखेंगे तो मोक्ष कैसे मिलेगा ?
जीव के रूप में हम व्यक्ति चेतना हैं । जीवास्तिकाय के रूप में हम समष्टि चेतना हैं। इसीलिए किसी भी जीव को सुखी या दुःखी बनाने के प्रयत्न से हम ही सुखी या दुःखी बनते हैं। ___'खामेमि सव्व जीवे' इस भावना पर तो हमारा सम्पूर्ण पर्वाधिराज पर्युषण पर्व अवलंबित है ।
. मुख्य वस्तु पंचाचार हैं। उनकी रक्षा के लिए ही अन्य सब महाव्रत आदि हैं ।
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कहे।