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प्रभु-भक्ति उत्कृष्ट विनय है । संसार के विनय में आकांक्षा है कुछ प्राप्त करने की । यहां यह भी नहीं है । सम्पूर्ण निराकांक्ष बन कर भक्त भगवान की भक्ति करता है । यह तो यहां तक कह देता है कि मुझे उस के बदले में मुक्ति भी नहीं चाहिये ।
- सूर्य की केवल एक किरण से अंधकार भाग जाता है, उस प्रकार भगवान की एक ही स्तवना से तो क्या, उनकी एक कथा से भी पाप भागता है - ऐसा मानतुंगसूरिजी कहते है :
_ 'आस्तां तव स्तवन...' परिचित स्तोत्रों में भी कितना भरा हुआ है ? क्या आपने कभी सोचा है ?
आपको लगता है कि चैत्यवन्दनों-स्तवनों में समय व्यर्थ जाता है । आप एक बार भक्ति का स्वाद तो चख कर देखें । निहाल हो जायेंगे ।
- 'भगवान सुन तो लेते हैं, परन्तु बोलते नहीं' यह वाक्य मैंने अभी बोला उसे क्या आप सत्य मानते हैं ? क्या प्रभु हमारे स्तवन, हमारी संवेदनाएं, हमारी प्रार्थनाएं सुनते हैं ? यह बात आप मानते हैं ? अथवा यह केवल उपचार प्रतीत होता है ? याद रहे कि जब तक आप साक्षात् भगवान सुन रहे हैं यह नहीं मानेंगे तब तक आप भक्ति नहीं कर सकेंगे ।
. शक्रस्तव में भगवान का एक सुन्दर विशेषण है - 'विश्वरूपाय !' भगवान विश्वरूप हैं, अर्थात् विश्व-व्यापी हैं । घटघट के अन्तर्यामी हैं भगवान !
त्वामव्ययं' इस गाथा में जो जो भगवान के विशेषण हैं, वे समस्त भगवान की भिन्न-भिन्न शक्ति के द्योतक हैं ।।
. आप भयभीत क्यों हैं ? क्योंकि आपने भगवान का शरण स्वीकार नहीं किया । यदि निर्भय बनना हो तो पहुंच जाओ भगवान के पास ।
'अभयकरे सरणं पवज्जहा' । अजितशान्ति के स्वचिता ने यह घोषणा की है।
. अन्य कार्यो के लिए आप अनेक घण्टे व्यतीत कर सकते हैं । क्या आप प्रभुभक्ति के लिए थोड़ा अधिक समय नहीं
कहे
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