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गलोर में वृद्धों की शिविर में, वि.सं. २०५१
१६-८-१९९९, सोमवार
श्रा. सु. ५
'देववन्दन' आदि सूत्रों में ऐसी शक्ति है कि वे अनादिकालीन चारित्र मोहनीय आदि कर्मों का क्षय करके हमारे भीतर विरति के परिणाम उत्पन्न करें । तीर्थंकर भी जब हाथ जोड़ कर सामायिक के पाठ का उच्चारण करते हैं, तब उनमें विरति के परिणाम उत्पन्न होते हैं ।
__ परिणाम तो हमारे भीतर पड़े हुए ही हैं, परन्तु ये सूत्र, क्रिया आदि उन्हें प्रकट करने वाले पुष्ट कारण हैं ।
जो शक्ति एवं सामर्थ्य नवकार, इरियावहियं, लोगस्स आदि में है, वह सामर्थ्य नूतन रचनाओ में नहीं है।
अंजार में डो. यू.पी.देढिया कहने लगे कि समस्त सूत्र प्राकृत में हैं। वे हमें समझ में नहीं आते । यदि गुजराती में रचना की जाये तो वे अत्यन्त उपकारक सिद्ध होंगी ।
इन दोनों में कांच एवं चिन्तामणि जितना फरक है । उन पवित्र सूत्रों के रहस्यार्थ, मंत्र-गभितता आदि गुजराती में कैसे उतारा जा सकता है ? अर्थों को समाविष्ट करने की जो शक्ति प्राकृत में है, वह गुजराती में कहां से लायें ? संस्कृत की गरिमा गुजराती
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