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. दो घड़ी के बाद क्या होने वाला है, किसे पता है ? भुज में मैं जिनालय में जाने वाला था, 'परन्तु पहले शोभायात्रा में जाकर आ जाऊं, फिर जिनालय जाऊंगा।' यह सोचकर शोभायात्रा में गया, परन्तु कौन जानता था कि अब जिनालय में नहीं, मेरा स्थान सीधा होस्पिटल में होगा । पन्द्रह दिनों तक निरन्तर दर्शन नहीं हुए । (गाय ने लगाया तब) 'बहुविग्घो हु मुहुत्तो' - यह वैसे ही नहीं कहा गया ।
- 'लैफ्ट' के समय लैफ्ट ही, 'राईट' के समय राईट पैर ही सैनिकों का आगे आता है । लैफ्ट-राईट का प्रश्न नहीं है, अनुशासन का प्रश्न है। यहां जोग में भी खमासमण इत्यादि के द्वारा विनय सीखना है । इसी कारण से इतने खमासमण आदि देने हैं ।
गुरु फिर कहते हैं - 'गुरुगुणेहिं, वुड्ढाहि' - 'महान गुणों से तेरी वृद्धि हो ।'
अपनी दीक्षा के दिन दीक्षित को कम से कम आयंबिल करना चाहिये।
बोलियों का यहां कहीं उल्लेख नहीं है। उपकरणों के चढावे तो आचार्य सम्मत हैं (उपकरणों के चढावे न हों तो भी कोई अविधि नहीं हैं ।) परन्तु नामकरण के चढावे उचित नहीं लगते है । इन चढावों के कारण दीक्षादाता आचार्यश्री की हित-शिक्षा गौण हो जाती हैं ।
. दो हजार सागरोपम से पूर्व नियमा हम एकेन्द्रिय में ही थे। यह हमारा इतिहास है । अनन्तकाल पूर्व नियमा हम अनन्तकाय में थे । हम बादर वनस्पति में अधिक समय तक नहीं रह सकते । पृथ्वी आदि एकेन्द्रिय में भी असंख्य अवसर्पिणी, उत्सर्पिणी ही रह सकते हैं, अधिक नहीं । अनन्तकाल की सुविधा तो केवल निगोद में ही है ।। .. 'हम तो इस आशा में थे कि आप तो मोक्ष में जायेंगे और हमें भी निकालेंगे, परन्तु आप तो पुनः यहीं आ गये ।' इस प्रकार निगोद के हमारे पुराने साथी अव्यक्तरूप से हमारी मजाक करेंगे,
अगर हम पुनः निगोद में जायेंगे । [११४ ****************************** कहे कलापूर्णसूरि - १)