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उनके लिए यह बात है। बाकी यहां आकर जो साधुत्व का पालन नहीं करते वे तो उभय-भ्रष्ट हैं । __'निर्दय हृदय छःकायमां, जे मुनि वेषे प्रवर्ते रे । गृह-यति लिंगथी बाहिरा, ते निर्धन गति वर्ते रे ॥
- यशोविजयजी १२५ गाथा का स्तवन यहां यदि साधुत्व का सम्यक् प्रकार से पालन नहीं करें तो पुनः यह साधुत्व प्राप्त होना प्रायः असम्भव है । चौदह पूर्वी भी अनन्त की संख्या में निगोद में पड़े हैं, यह स्मरण रखने योग्य
गुरु का सामान्य उलाहना (उपालंभ) सहन नहीं हो तो परिणाम कैसा होता है ? यह भुवनभानु केवली चरित्र में बताया गया है।
एक चौदह पूर्वी नींद में पड़े थे । नींद अत्यन्त प्रिय लग रही थी । उन्हें स्वाध्याय प्रिय नहीं लगता था । गुरु ने उपालंभ दिया तो उनसे सहन नहीं हुआ । वे मृत्यु के बाद निगोद में गये ।
. बड़े शहरों में व्याख्यान में केवल वृद्ध लोग ही आते हैं । वे भी पर्युषण तक आते हैं । ऐसा प्रतीत होता है कि मानो साधुओं को आमदनी करने के लिए ही बुलाये हों । सोलापुर जैसे में भी पर्युषण के बाद व्याख्यान बंद रखने जैसी स्थिति हो गई थी ।
- गुरु आपको कब कहें ? उपालंभ सुनकर आप प्रसन्न हों तो । यदि आपके चेहरे पर थोड़ी भी अप्रसन्नता दिखाई दे तो गुरु आपको कहना कम कर देंगे अथवा कहना बन्द भी कर देंगे ।
गुरु द्वारा दिये गये उपालंभ के प्रत्येक वचन को जो चन्दन के समान शीतल माने उस भाग्यशाली शिष्य पर ही गुरु की कृपा बरसती है ।
धन्यस्योपरि निपतत्यहितसमाचरणधर्मनिर्वापी । गुरुवदन-मलय-निःसृतो वचनरसश्चन्दनस्पर्शः ॥
- प्रशमरति प्रमाद मधुर लगता है, अत्यन्त ही मधुर । जो मधुर लगता है उसे दूर करना कठिन होता है । 'सुगर कोटेड' विष है यह प्रमाद । मित्र का चोला पहन कर आने वाला शत्रु है यह प्रमाद ! कहे कलापूर्णसूरि - १
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