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वाले अल्प होने का कारण क्या ?
उत्तर : जौहरी की दुकानें अल्प ही होती हैं । सब्जी की दुकानें ही अधिक होती है। फिर उन अल्प साधुओं में भी उच्चकोटि का साधुत्व पालने वाले दो-तीन ही होते हैं । यह काल ही ऐसा है । महाविदेह क्षेत्र में करोड़ों होते हैं ।
मैं संख्या-वृद्धि का हिमायती नहीं हूं। जिन्हें नहीं सम्हाला जा सके, उन्हें रखना कहां ? पशुओं के लिए तो पांजरापोल हैं, परन्तु यहां पांजरापोल नहीं हैं ।
पू. भद्रंकरविजयजी पंन्यासजी ने कहा था, "किसी बात की चिन्ता न करें । केवली ने जो देखा था वही हो रहा है। क्या हम केवली से भी बड़े है ? उनसे अन्यथा होना चाहिये, ऐसा सोचने वाले हम कान ?'
आज घर घर में टेलिविजन हैं । बचपन से ही टेलिविजन देखने वाली वर्तमान पीढी हमारी पंक्ति में कहां बैठेगी ?
ऐसे युग में इतने व्यक्ति दीक्षित हो रहे हैं यह भी सौभाग्य की बात है। बड़े-बड़े व्यापारी सुख से भोजन भी नहीं कर सकते, प्राप्त सुख का उपभोग भी नहीं कर सकते । 'नहीं मिला' की चिन्ता में जो 'है' वह भी चला जाता है । ऐसी चिन्ता वाला दीन होता है । उदर-पूर्ति करने जितना भी अनेक व्यक्तियों को नहीं मिलता । अनेक व्यक्तियों को व्याज की चिन्ता रहती है ।
ऊपर से अत्यन्त आकर्षक लगने वाले भी बहुत लोग भीतर खोखले हो चूके होते हैं । जब वे हमारे पास अपनी वेदना व्यक्त करते हैं तब उनके सम्बन्ध में ख्याल आता है। __ इसे यदि पुन्योदय कहेंगे तो पापोदय किसे कहेंगे ?
जिसके द्वारा अनासक्ति प्राप्त हो, संक्लेश न हो, वह पुन्यानुबंधी पुन्य कहलाता है । उदाहरणार्थ शालिभद्र, धनाजी आदि ।
अध्यात्मसार - भक्ति भगवान की भक्ति कदापि निष्फल नहीं जाती ।
'भक्ति बढने के साथ आत्मा के आनन्द की, आत्मानुभूति की शक्ति बढती है' - ऐसा देवचन्द्रजी का स्वानुभव है ।
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