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बिल्ली जिस तरह अपने बच्चों को सुरक्षित स्थान पर रखती है उस प्रकार भगवान भक्त को मोक्ष में ले जाते हैं, ऐसा भक्त को भगवान पर प्रगाढ विश्वास होता हैं ।
भगवान भले वीतराग है परन्तु साथ ही साथ पतित को पावन करने वाले और शरणागत के रक्षक है, यह आप न भूलें । __यशोविजयजी कहते है - चाहे मोह के भारी तूफान आयें, चाहे जितनी आंधियां आयें, परन्तु मुझे थोड़ा भी भय नहीं है, क्योंकि तारणहार प्रभु मेरे पास है।
भगवान के नाम मेरे पास है अर्थात् भगवान मेरे पास है। 'नाम ग्रहंता आवी मिले, मन भीतर भगवान' - इस प्रकार उपा. मानविजयजी ने कहा है ।
___ आप को प्लेन में भी विलम्ब लगता है, भगवान को आने में थोड़ा भी विलम्ब नहीं लगता । आप उनका नाम लें और वे उपस्थित हो जाते हैं । आप अभी तक भगवान की शक्तियों को पहचानते नहीं हैं । भगवान विभु हैं - ऐसा मानतुंग सूरिजी ने कहा है । विभु अर्थात् केवलज्ञान से विश्व-व्यापी । जिसे सर्वत्र प्रभु दिखाई दे, उसे भय किस बात का ?
भगवान हमारी गुप्त से गुप्त प्रवृत्ति भी जानते हैं - क्या यह विश्वास हैं ? ऐसा जानने के बाद हम अशुभ प्रवृत्ति कर सकते हैं क्या ?
'लोगो जत्थ पइट्टिओ' श्रुतज्ञान में भी लोक प्रतिष्ठित हो तो क्या भगवान में नहीं ?
प्रश्न : इतनी सारी साधनाओं में हम कौन सी साधना करें ? हम उलझन में पड़ गये हैं ।
उत्तर देते हुए उपा. यशोविजयजी म. कहते हैं - असंख्य योग का विस्तार (माया = विस्तार) बहुत लंबा चौडा है । शुद्ध द्रव्य-गुण-पर्याय के ध्यान से प्रभु तुरन्त मुक्ति देते हैं ।
विदेहमुक्ति भले यहां प्राप्त न हो, जीवन्मुक्ति प्राप्त हो सकती है । प्रभु के गुण - पर्यायों का ध्यान धरता योगी ऐसी कक्षा पर पहुंचता है कि वह शुक्ल ध्यान का अंश इस काल में भी प्राप्त कर सकता हैं । यशोविजयजी ने स्वयं यह बात योगविंशिका में लिखी है।
१०४ ****************************** कहे