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- सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्राणि मोक्षमार्गः ।
- तत्त्वार्थ सूत्र इस सूत्र में उत्क्रम से पंच परमेष्ठी विद्यमान हैं ।
'मार्ग' से 'अरिहंत', 'मोक्ष' से सिद्ध, 'चारित्र' से आचार्य, 'ज्ञान' से उपाध्याय, 'दर्शन' से साधु एवं 'सम्यग्' से नमस्कार निर्दिष्ट हैं।
- मोक्ष की अभिलाषा अर्थात् सिद्ध बनने की अभिलाषा । सिद्ध की अभिलाषा अर्थात् शुद्ध होने की अभिलाषा । जितने अंशों में आप शुद्ध बनते हैं, उतने अंशों में आप सिद्ध बनते हैं । यहीं आप पल-पल में सिद्ध बन रहे हैं। ___ 'कडे माणे कडे' के सिद्धान्त से यह कहा जा सकता है । 'मिज्जमाणे मडे' से जैसे इस समय हम मर रहे है, उस प्रकार शुद्ध होते हुए हम इस समय ही सिद्ध बन रहे हैं, क्या यह नहीं कहा जा सकता ?
. निश्चय से प्रतिपत्ति पूजा ११-१२-१३ गुणस्थानक पर होती है, परन्तु उसका प्रारम्भ चौथे गुण-स्थानक से हो सकता है ।
प्रभु-आज्ञापालन स्वरूप पूजा सर्व प्रथम आनी चाहिये, उसके बाद प्रतिपत्ति पूजा आती हैं । हिंसा आदि आश्रवों का त्याग प्रभु का आज्ञा-पालन है । मिथ्यात्व-अविरति-प्रमाद-कषाय-योग ये आश्रवों के पांच द्वार हैं । उन्हें रोकना प्रभु की आज्ञा हैं ।
आश्रवों के द्वार खुले नहीं रखे जाते । दुकान का द्वार एक रात खुला रख कर तो देखें । अनादिकाल से हमने पांच-पांच द्वार खुले रखे हैं । यदि लूट नहीं होगी तो क्या होगा ?
संवर आश्रव का प्रतिपक्षी है । द्वार पर जैसे 'वोचमैन' रखते हैं, उस तरह आत्म-मंदिर में संवर के 'वोचमेन' चाहिये । विवेक जैसा कोई वाचमैन नहीं है।
विवेक प्रभु-कृपा से आता है । हेय उपादेय की सम्यक् जानकारी-पूर्वक का ज्ञान-सहित आचरण विवेक है।
. प्रभु-भक्ति में तरबोल हो जायेंगे, उतने गुण आपको नहीं छोड़ेंगे । यह तो मजीठ का रंग है। भक्ति 'विनयगुण' है । विनयगुण आ जाये तो भला अन्य कौन से गुण नहीं आयेंगे ?
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