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प्रवेश, वि.सं. २०५५ मत
२९-७-१९९९, गुरुवार
श्रा. व. १
. पूर्वजन्म में करुणा को अत्यन्त ही भावित बनाई होने से भगवान स्वयं करुणामय हैं, करुणासागर हैं तथा उनका धर्म भी करुणामय है । मेघरथ राजा कबुतर को बचाने के लिए अपने प्राण देने के लिए तत्पर हो गये ।
___ अपनी आत्मा की अपेक्षा भी दूसरे को अधिक गिनें । 'आत्मवत् सर्व भूतेषु' से भी ऊंची यह दृष्टि है। मंत्री आदि ने इनकार किया फिर भी मेघरथ महाराजा स्व-निर्णय से विचलित नहीं हुए। करुणा ने इनकार किया, शरणागत की किसी भी मूल्य पर रक्षा करनी, यह उन्हें करुणा ने सिखाया ।
शान्तिनाथ भगवान का यह पूर्व का तीसरा भव है । ऐसी करुणा के कारण उन्होंने उसी भव में तीर्थंकर नाम-कर्म बांधा ।
आचारांग सूत्र करुणा का झरना है।
गोविन्द पण्डित ने इस आशय से दीक्षा अंगीकार की थी कि यदि जैन दर्शन का खण्डन करना हो तो दीक्षा ग्रहण कर के जैनदर्शन का अध्ययन करना पड़ेगा । परन्तु आचारांग सूत्र पढने से हृदय परिवर्तन हो गया, उसके बाद उन्होंने दीक्षा ग्रहण की ।
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