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१०८ मंजिल की बिल्डिंग, एक-एक मंजिल पर सौ कमरे, सभी पूर्ण रूप से हीरे-मोतियों से पूर्ण हैं । सब मिलकर कितना माल ?
हमारी आत्मा के असंख्य प्रदेश है । प्रत्येक प्रदेश में अनन्त गुण हैं । कितने गुण हो जायेंगे ?
ये गुण प्राप्त करने का प्रयत्न करो तो ?
पढने का - गुणों का लोभ उत्तम हैं, तप का, स्वाध्याय का सेवा का लोभ उत्तम हैं, परन्तु वस्तु एकत्रित करने का लोभ खतरनाक हैं । उससे बचना चाहिये ।
१६-२-२००२ शनिवार के दिन प.पू.गुरुदेव आ.वि. कलापूर्णसूरीश्वरजी का स्वर्गगमन की बात सुनकर मुझे तो विश्वास ही नहीं हुआ । पर दो-चार बार नाकोड़ा आदि ओर से समाचार ज्ञात होने के बाद ऐसा हुआ कि कुछ क्षण स्व भान नहीं रहा । फिर कुछ क्षण के बाद मानो सारा विश्व शून्य सदृश लगा । फिर उसी विचारधारा में चढते हुए जैसे पूज्य प्रवर श्री गौतम स्वामी को भगवान महावीरस्वामीजी का मोक्ष पदार्पण का समाचार नगरवासी एवं देवताओं के द्वारा श्रवण कर स्व भान भूलकर विलाप करने लगे वही दृश्य में स्व में अनुभव करते हुए आनन्दबाष्प आ गये। अपने सारे साधु समुदाय में ही नहीं बल्कि सारा भारतभर दुःख का अवसर बन गया ।
प्रवर गुरु भगवंत को कौन नहीं चाहते थे ? जीवमात्र के साथ कल्याणमय मंगल वचन शुभाशीष, जिनके सम्पर्क से चाहे साधु हो या गृहस्थ, प्रसन्न होकर लौटते थे । मैं भी स्वयं आप पूज्यश्रीजी के साथ दो दिन में रहा हूं। स्वबन्धु की तरह वात्सल्य दर्शाये, वह मैं अपने स्थूल शब्दों से व्यक्त नहीं करता। - मु. राजतिलकविजय की वंदना
जोधपुर.
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