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दोष दुर्गति में ले जाते हैं । क्या आप दुर्गति में जाने के लिए तैयार हैं ? चंडकौशिक को दुर्गति में भी भगवान महावीर मिले थे। क्या हमें कोई भगवान महावीर मिलें, ऐसा विश्वास हैं ? कितनी उत्कृष्ट आराधना का पुण्य संचित होगा कि साक्षात् तीर्थंकर से मिलन हुआ ? क्या आपने इस पर कभी चिन्तन किया है ?
उस जीव का उद्धार करने के लिए भगवान ने कितना जोखिम उठाया ?
* कई बार शब्द भी धोखा करनेवाले होते हैं । उद्योग जैसे शब्दों का अपमान 'मत्स्योद्योग' आदि में दृष्टिगोचर होता हैं । 'औषधि' जैसे शब्दों का अपमान 'चूहे मारने की दवाई' में देखने को मिलता है । औषधि हमें जिलाती है या मारती हैं ? जो मारने का कार्य करे उसे भी औषधि कही जाये तो फिर विष किसे कहेंगे ?
३. पूज्या गुणगरिमाऽऽढ्याः । गुण-गरिमा से मण्डित पूज्य पुरुषों का सन्मान करना ।
गुणों से ही महान् बना जा सकता है, पद से, शिष्य-परिवार से या भक्तवर्ग से नहीं ।
पूज्य की पूजा करने से पूजक में पूज्यता आती हैं । गुण का नियम है - सम्मान किये बिना कभी नहीं आते ।
भवस्थिति की परिपक्वता के लिए तीन उपायों में 'शरणागति' सर्व प्रथम उपाय है। चार का शरण किस लिए ? वे गुणों से मण्डित हैं । उनकी शरण लेने से उनके गुण हमारे भीतर आ जाते हैं ।
गुण हमारे भीतर पड़े हुए ही है । कर्मोंने उन्हें ढक लिया है । कर्मों का काम गुणों का ढकना है । गुणों के सम्मान का काम गुणों को प्रकट करना है। जिन गुणों का सम्मान होता जाये वे वे गुण हमारे भीतर अवश्य आ जाते हैं । आपको कौन सा गुण चाहिये ? जीवन में किसका अभाव है ? वह देखें । जिस गुण का अभाव हैं उसका अन्तर से सम्मान करें । वह गुण आपके भीतर अवश्य आ जायेगा ।
गुणी की पूजा करनी चाहियें । किस तरह पूजा करेंगे ? मन, वचन एवं काया से पूजा करेंगे । मन से सम्मान, वचनों कहे कलापूर्णसूरि - १ *****
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