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राजा के नाम लेते ही समाचार मिला - 'आपके नगर पर शत्रु-सेना ने आक्रमण कर दिया है ।' राजा घबराया ।
अब्रह्मचारी के नाम में ऐसी शक्ति हो तो क्या ब्रह्मचारी के नाम में नहीं होगी ? राजकुमार ने संकल्प किया, 'यदि मैंने मन, वचन, काया से शील का पालन किया हो तो उपद्रव का शमन हो जाये ।' शत्रु-सेना के हाथ रुक गये ।
इसीलिए ही 'भरहेसर सज्झाय' में उत्तम पुरुषों के हम नाम लेते हैं । 'जेसिं नामग्गहणे पावप्पबंधा विलयं जंति ।' व्यक्ति उत्तम तो नाम उत्तम, रूप उत्तम, दर्शन उत्तम, सभी उत्तम ! .
६. आलापैः दुर्जनस्य न द्वेष्यम् । धोबी तो वस्त्र धोने के रूपये लेता है । ये दुर्जन तो निःशुल्क हमारा मैल धोते हैं। धोबी मैल फैंक देता है, जबकि दुर्जन उसे अपनी जीभ पर रखते
जो वाणी हमें प्रभु के गुण गाने के लिए प्राप्त हुई है, उसके द्वारा दूसरों की निन्दा ? वाणी का यह कैसा दुरुपयोग है ? जिस स्थान पर लाख रुपये कमाये जा सकते हैं, उस दुकान में क्या घाटे का धंधा करे ? ऐसे कितने ही जीव हैं जिन्हें जीभ प्राप्त नहीं हुई । वाणी का दुरुपयोग वाणी विहीन (जीभ-विहीन) भवों में ले जायेगा । यदि संसार के समस्त गुणों के दर्शन एक ही व्यक्ति में करना चाहें तो, परमात्मा को पकड़ लें ।
'महतामपि महनीयो' बड़ों के लिए भी पूजनीय ऐसे प्रभु हमारी स्तुति के विषय बनें, ऐसा हमारा सौभाग्य कहां ?
७. 'त्यक्तव्या च पराशा'
'पारकी आशा सदा निराशा' 'पर' अर्थात् 'स्व' के अलावा सब । आपके कार्य आपको ही करने पड़ेंगे, अन्य व्यक्ति नहीं कर सकेंगे । जितना कार्य करेंगे उतनी स्फूर्ति रहेगी । वीर्यान्तराय का क्षयोपशम होगा । बाहुबली को याद करें ।
देह को श्रम होगा तो रोग नहीं होंगे । यदि परिश्रम नहीं करोगे तो रोगी बनोगे । गौतम स्वामी 'छट्ठ' के पारणे पर भी स्वयं गोचरी लाने जाते । उनकी दृष्टि में इसके दो लाभ होंगे :
१. भगवान का लाभ मिलेगा, २. स्वाश्रयिता बनी रहेगी ।
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