________________
क्रियाओं में से मन को खींचकर धर्म- क्रियाओं में लगा दो तो बेड़ा पार हो जायेगा ।
✿ तामस मन आलसी होता है, राजस मन चंचल होता है और सात्त्विक मन स्थिर ( स्थितप्रज्ञ ) होता है ।
यदि कोई कौतुक ( तमासा ) आया हो तो तामसी या सात्त्विक उसे देखने के लिए नहीं जायेगा, क्योंकि एक प्रमादी और दूसरा स्थितप्रज्ञ हैं । राजसी जायेगा क्योकि उसके मन में चंचलता है । तामसी एवं सात्त्विक दोनों स्थिर प्रतीत होंगे परन्तु दोनों के बीच आकाश-पाताल का अन्तर हैं। एक में सुषुप्ति है, दूसरे में जागृति है ।
✿ परमात्म-भावना का पूरक, बाह्मात्मभाव का रेचक और स्वभाव का कुभ्भक यह भाव प्राणायाम है । यह खतरे - रहित है । द्रव्य प्राणायाम की विशेष उपयोगिता नहीं है । यद्यपि श्री हेमचन्द्रसूरिजी ने योगशास्त्र के पांचवे प्रकाश में द्रव्य प्राणायाम का वर्णन किया है, परकाय प्रवेश की विधि भी बताई है, परन्तु साथ ही साथ उसका खतरा भी बताया है ।
-
* 'विमला ठकारने मुझे कहा है बंद करके निःशब्द में उतर जाओ ।' शशिकान्तभाई ने अभी मुझे पूछा । मैंने शशिकान्तभाई को कहा 'स्वाध्याय, जाप आदि करते रहें । निःशब्द के लिए शब्दों का त्याग आवश्यक नहीं है । वाणी तो भगवान की परम भेंट है । उसका त्याग ठीक नहीं हैं, सदुपयोग करें । निःशब्द अवस्था के लिए शब्द छोड़ने नहीं पड़ते, स्वत: ही छूट जायेंगे । उपर जाने के बाद हम सीड़ीयो को तोड़ नहीं देते । जब नीचे आना होगा तब उन्हीं सीड़ीयो की आवश्यकता पड़ेगी ।' शशिकान्तभाई ने कहा 'आपने दस वर्षों का भाता बांध दिया । मेरा मन पूर्णतः निःशंक बन गया। आपके उत्तर से में पूर्णरूपेण सन्तुष्ट हूं ।' * 'अजकुलगत केसरी लहेरे, निज पद सिंह निहाल । तिम प्रभु-भक्ते भवी रहे रे, आतम-शक्ति संभाल ॥'
1
पू. देवचन्द्रजी बकरियों के समूह में बचपन से ही रहा हुआ सिंह स्वयं *** कहे कलापूर्णसूरि -
१४ **
-
समस्त वाणी के व्यवहार क्या यह बराबर
?