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प्रवचन-२६
२२ श्रीयक की खानदानी समझियेगा : ___ श्रीयक की भी खानदानी और कुलीनता कैसी अद्भुत! उसने स्वयं मंत्रीपद स्वीकार नहीं किया! उसने अपने बड़े भाई को याद किया.....कि जिस बड़े भाई ने बारह साल से घर नहीं देखा था, जो अपने छोटे भाई और बहनों को नहीं मिला था। यों देखा जाय तो महामंत्री की कीर्ति को कलंक भी लगाया था महामंत्री का पुत्र एक वेश्या के वहाँ १२-१२ साल पड़ा रहे, इससे महामंत्री की इज्जत पर असर होगा या नहीं? ऐसे भाई को महामंत्रीपद के लिए याद करना चाहिए क्या? श्रीयक ने याद किया, वह अच्छा किया या बुरा किया? आप लोगों की क्या राय है? मान लो कि श्रीयक आपकी राय लेने आता तो आप क्या राय देते? वह आकर आपको पूछता : 'आप बुद्धिमान हैं, मुझे राय देने की कृपा करें कि राजा मुझे मंत्रीपद दे रहा है तो मैं स्वीकार कर लूँ या बड़े भाई को मंत्रीपद देने के लिए बात करूँ? वास्तव में अधिकार है बड़े भाई का। बड़े भाई के अधिकार की वस्तु मैं कैसे लूँ?'
आपकी इस प्रकार राय मांगता तो आप क्या राय देते? बोलो न! चुप क्यों हो? भाई के अधिकार का पद, भाई के अधिकार का धन, भाई के अधिकार का मकान, भाई के अधिकार की जमीन....जो कुछ भाई का हो, आप उसे हड़पने का नहीं सोचते हैं न? आप लोग तो धर्मात्मा हैं..... आप कैसे सोच सकते हैं ऐसा! __ सभा में से : आप कृपया हम लोगों की बात ही न करें। भाई क्या, माँ और बेटी की संपत्ति भी मिलती हो तो नहीं छोड़ें। __ महाराजश्री : तो फिर श्रीयक की खानदानी का खयाल आ गया न? उस परिवार के खून में खानदानी थी! भाई भले वेश्या के वहाँ हो, परन्तु इससे क्या? उसका अधिकार नहीं छीना जा सकता | स्थूलभद्रजी के प्रति श्रीयक के हृदय में कोई दुर्भावना नहीं थी, द्वेष नहीं था, धिक्कार का भाव नहीं था। इतना ही नहीं, स्थूलभद्र के प्रति प्रेम और आदर था! विनय और भक्ति थी। इसलिए तो जब दोनों भाई उद्यान में मिले, श्रीयक स्थूलभद्र के चरणों में गिर पड़ा। पिताजी के साथ जो घटना बनी, सारी घटना बता दी स्थूलभद्र को। अयोग्य को योग्य बनाने का तरीका :
अब आइये, आपके दूसरे प्रश्न का जवाब देता हूँ। 'मंत्रीपद की योग्यता स्थूलभद्र में नहीं थी, इसलिए उनको मंत्रीपद नहीं देना चाहिए था।' यह बात
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