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प्रवचन-४०
१९४
गुणदृष्टा बनो :
सभा में से : शिष्ट पुरुषों की पहचान कैसे हो?
महाराजश्री : उनके विशिष्ट और विशद्ध आचरणों से! एक बात सदैव याद रखना कि शिष्ट पुरुष कोई परिपूर्ण सर्वज्ञ वीतराग नहीं होते हैं! ये शिष्ट पुरुष संसारी होते हैं यानी संसार में रहने वाले जीव होते हैं, छद्मस्थ होते हैं, इसलिए उनके कोई दोष भी हो सकते हैं, वे कभी कोई गलती भी कर सकते हैं, परन्तु आपको देखने हैं मात्र गुण! दोष देखने नहीं हैं। शिष्ट पुरुषों की शिष्टता देखने के लिए चाहिए गुणदृष्टि! यदि आपकी गुणदृष्टि होगी तो ही आप शिष्टपुरुषों की शिष्टता देख पाओगे, अन्यथा नहीं! दोषदृष्टि तो सर्वज्ञ वीतराग में भी दोष निकाल सकती है! गुणदृष्टिवाला मनुष्य ही शिष्ट पुरुषों का प्रशंसक बन सकता है। दोषदृष्टिवाला स्वार्थवश भले ही प्रशंसा कर ले, उसकी प्रशंसा हार्दिक नहीं होगी। उसका मन नहीं जुड़ेगा उस प्रशंसा में!
शिष्टता-सज्जनता पाना जिसका लक्ष्य है, ध्येय है, उसको शिष्ट पुरुषों की हार्दिक प्रशंसा करनी ही होगी। ऐसा व्यक्ति प्रशंसा करेगा ही, उसके मुँह से प्रशंसा के स्वर मुखरित हो ही जायेंगे! शिष्टता संपादन करने की तमन्ना शिष्ट पुरुषों की खोज करवायेगी, परिचय करवायेगी और प्रशंसा करवायेगी! आन्तरिक निरीक्षण करो, शिष्टता प्राप्त करने का लक्ष्य बना है? देखो, ध्यान से देखो, सज्जनता पाने की तमन्ना जगी है? हाँ, यदि आपको सज्जनों की जीवनचर्या पसन्द आ गई है, आप उनके सत्कार्यों के प्रशंसक बने हुए हो, तो निश्चित है कि आप शिष्ट बनने जा रहे हो! मनोबल के बगैर मुश्किल है :
एक उदाहरण लेकर यह बात समझता हूँ : आपका एक मित्र है, शादी हो गई है उसकी। घर में सुशील पत्नी है। दोनों का जीवन गंगा के प्रवाह की तरह बह रहा है। जब देखो तब दोनों पति-पत्नी प्रसन्न दिखाई देते हैं। एक दिन जब आप उस मित्र से मिलते हैं, वह उदास दिखायी देता है....कुछ गंभीर और विचारमग्न | आपने उससे उदासी का कारण पूछा, आग्रह करके पूछा, उसने थोड़ी सी झिझक के साथ बताया...कि जिस आफिस में वह काम करता है, वहाँ एक महिला भी सर्विस करती है। आफिसवर्क की वजह से दोनों का आपस में मित्रता का सम्बन्ध हुआ, परन्तु मात्र आफिस में ही बातचीत! बाहर निकलने के बाद उस महिला के सामने भी नहीं देखता...न
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