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प्रवचन-४६ वे इन्सान कहलाने के लायक नहीं है! :
शिष्ट-सज्जनों के सदाचारों की प्रशंसा भी जो नहीं कर सकते, वे मानव कहलाने लायक भी हैं क्या? देह मानव का और जीवन पशु का बनता जा रहा है। यदि पशुता ही पसन्द हो तो इस धर्मोपदेश की आपको कोई आवश्यकता नहीं है | गृहस्थ जीवन को स्वस्थ, सुन्दर और सुखमय बनाने की तीव्र इच्छा हो, गृहस्थ जीवन को आनन्द और उल्लास से जीने की भावना हो तो दुनिया की रीत-रसमों को छोड़ो और इन सामान्यधर्मों को जीवन में जीने का प्रयत्न शुरू कर दो। 'डिवाइन लाइफ' बनाने का 'प्लान' बनाओ। दृढ़ संकल्प करना होगा : __ वैचारिक भूमिका को समृद्ध बनाना अति आवश्यक है। वैचारिक स्तर स्वच्छ उन्नत और पवित्र बनाने का द्रढ़ संकल्प करो। सज्जनों की जीवनचर्या विशिष्ट गुणसमृद्धि और उच्चतम औचित्यपालन की बातें सुन कर, उनके प्रति अहोभाव से....प्रशंसा की दृष्टि से देखो और अपने आप को वैसा बनाने की कल्पना करो। जीवनव्यवहार को बदलने का दृढ़ संकल्प आपको करना
होगा।
'शिष्टचरित प्रशंसनम्' चौथा सामान्य धर्म है। सब मिलाकर ३५ सामान्य धर्मों का, ग्रन्थकार ने प्रतिपादन किया है। ये ३५ सामान्य धर्म, यदि जीवन व्यवहार में ओतप्रोत हो जाएँ तो जीवन नन्दनवन बन जाय। सच्चे अर्थ में मानव मानव बन जाय ।
आज, बस इतना ही।
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