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प्रवचन- ४६
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की माँ भी साथ थी और उसने उस मजनू की चप्पल से आरती उतार दी !
लड़का इसलिए प्रवचन में आता था, चूँकि वह लड़की भी प्रवचन सुनने आती थी! उस लड़की के प्रति वह लड़का मोहित था और उसके साथ शादी करना चाहता था। प्रवचन में जैसे पुरुष आते हैं वैसे महिलाएं भी आती हैं। वह लड़की महिला विभाग में बैठती थी तो यह लड़का पुरुष विभाग में ऐसी जगह बैठता था कि जहाँ से वह उस लड़की को देख सके और ... !!
अब कहिये, उस लड़के को जाग्रत मानना या सोया हुआ ? 'काम' शत्रु के प्रभाव में था वो लड़का ! बाहर से जगता हुआ भी वह भीतर से सोया हुआ था । धर्मोपदेश वह सुनता कैसे ?
जब तक मनुष्य काम-क्रोध-लोभ -मद-मान और हर्ष को मित्र मान रहा है और उनके सहारे जीवन जी रहा है, तब तक वह सोया हुआ है, उस पर बेहोशी छायी हुई है। भाग्य से जग जायं .... तो काम हो जाय ।
सभा में से : आप जगाने आये हो और जगाने का भरसक प्रयत्न करते हो, तो जगेंगे ही!
महाराजश्री : जीवों को जगाना, तो मेरा परम कर्तव्य है और जगाने का प्रयत्न करने में थकान भी महसूस नहीं होती है! सब जीव जगे, सुने, समझे और शत्रुओं को मार भगायें....ऐसी मेरी अभिलाषा है। ऐसी मेरी शुभेच्छा है, परन्तु वास्तविकता दूसरी है ! बहुत कम लोग जगते हैं! ज्यादातर लोग नहीं जगते! युगों तक नहीं जगेंगे !
कुछ जीव तो अनन्तकाल तक नहीं जगेंगे। जगाने वाले तीर्थंकर मिलेंगे, तो भी कुछ जीव नहीं जगेंगे! जगेंगे नहीं तो सुनेंगे कैसे ? सुनेंगे नहीं तो समझेंगे कैसे? समझेंगे नहीं कि 'ये मेरे शत्रु हैं' तो लड़ेंगे कैसे?
भीतर में सुनो : भीतर में समझने की कोशिश करो :
यदि आप लोग समझेंगे कि 'ये काम, क्रोध, लोभ, मद, मान और हर्ष - शत्रु हैं, हमारी आत्मा का अहित करने वाले हैं, दुःखी करने वाले हैं, तो मैं मानूँगा कि आप सुनते हैं। सुनते हैं इसलिए आप जाग्रत हैं! आप जगे हैं! भीतर में जगना है। भीतर में सुनना है, भीतर में समझना है। इसलिए भीतर में जाना पड़ेगा। भीतर में तभी जाओगे, जब बाहर में मजा नहीं आएगा । भीतर में तभी आओगे, जब बाहर में परेशानी महसूस होगी । अथवा, भीतर में क्या क्या भरा पड़ा है, वह जानने-देखने की जिज्ञासा से भी भीतर जाया जा सकता है।
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