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प्रवचन-४७ मांसभक्षण करनेवाले और शराब पीने वाले लोग क्या अपनी कामवासना को संयम में रख सकते हैं? कामोत्तेजक औषधियों का तो त्याग करना ही होगा।
वस्त्रपरिधान भी वैसा करना चाहिए कि जिस से कामवासना संयम में रहे। वस्त्रपरिधान के साथ कामवासना का संबंध है! इसलिये मर्यादा में रहते हुए वस्त्रपरिधान करना चाहिए। आपकी वेशभूषा ऐसी होनी चाहिए कि आपको देखने वाले दूसरे लोगों के मन और नयन विकृत न हो! बच्चों को भीतरी शत्रुओं का परिचय दो :
सभा में से : आजकल तो हमारे लड़के-लड़कियाँ ऐसे वस्त्र पहनते हैं और ऐसी विभूषा करते हैं कि उनकी और लोगों की निगाह जाये बिना न रहे। लड़के चाहते हैं कि लड़कियाँ उनको देखती रहें। लड़कियाँ चाहती हैं कि लड़के उनको देखते रहे।
महाराजश्री : ऐसा क्यों होता है? आन्तरिक शत्रुओं का उन्हें कोई खयाल ही नहीं है! आन्तरिक पापवृत्तियों की उन्हें पहचान ही नहीं है! उन्हें चाहिए इन्द्रियों के प्रिय विषय | उन्हें चाहिए विषयभोग | उन्हें चाहिए मात्र बाहरी आनंद-प्रमोद | उनकी दुनिया ही दूसरी है। आन्तरिक शत्रुओं का परिचय क्या आप लोगों ने अपनी संतानों को कभी दिया है? बाल्यकाल में यदि बच्चों को सरल भाषा में आप आन्तरिक शत्रुओं का परिचय देते, इन्द्रियसंयम की बातें करते और आप स्वयं वैसा उदाहरण प्रस्तुत करते तो आज जो विकृत परिस्थिति पैदा हुई है, वह पैदा नहीं होती। युवा पीढ़ी को कैसे समझायें कि काम-वासना आन्तरिक-शत्रु है। चूंकि वे लोग कामवासना को मित्र मान रहे हैं। कामवासना के माध्यम से ही वे सुख का, ऐन्द्रियक सुख का अनुभव करना चाहते हैं। शत्रु को मित्र मानकर चलने वालों को सही बात समझाना, सरल काम नहीं होता। ___ मेरा अभी यह कहना नहीं है कि आप सभी ब्रह्मचारी बन जाओ। हालांकि, ब्रह्मचारी बन जाओ तो मुझे खुशी अवश्य होगी, परन्तु आप सभी ब्रह्मचारी बन जाये, वह संभव नहीं लगता। क्यों ठीक बात है न? ब्रह्मचारी नहीं, सदाचारी तो बने रहो। शादी न हो वहाँ तक :
जब तक शादी न हो, तब तक तो अवश्य ब्रह्मचर्य का पालन होना चाहिए | शादी से पूर्व विजातीय शारीरिक संबंध नहीं होना चाहिए | सजातीय शारीरिक
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