________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
प्रवचन-४८
२८०
इस प्रकार की मान्यतायें जब बन जाती हैं तब क्रोध से मित्रता बंध जाती है। ज्यों-ज्यों मित्रता दृढ़ होती है त्यों-त्यों क्रोध प्रबल बनता जाता है। बस, अनर्थों की परंपरा शुरू हो जाती है। गुस्सा मनुष्य के वश नहीं रहता, मनुष्य गुस्से के वश हो जाता है ।
गुस्से को मित्र बना लो :
बड़ी महत्व की बात है यह । क्रोध आपके वश में रहता हो तब तक वह आपका नहीं बिगाड़ेगा। आपको वह उपयोगी भी बन सकता है । जैसे, सर्प जब तक सपेरे के वश में रहता है तब तक सर्प से सपेरा पैसा कमाता है, परन्तु सपेरा यदि साँप के वश हो गया तो .... मौत ही होती है, वैसे मनुष्य पर यदि क्रोध हावी बन जाता है तो मनुष्य अनेक जन्मों तक बरबाद होता रहता है।
यों तो साधु को भी विशेष प्रसंग में क्रोध करने की इजाजत तीर्थंकरों ने दी है। परन्तु वैसे साधुओं को दी है कि जो साधु क्रोध को शत्रु मानता हुआ, उसके वश न हो। क्रोध को अपने वश में रखता हुआ, मात्र उसका उपयोग कर ले! क्रोध को मात्र साधन के रूप में ही इस्तेमाल करे।
वैसे आप लोगों को, गृहस्थों को भी वैसी सावधानी रखने की है कि आप क्रोध के 'कन्ट्रोल' में नहीं रहें । क्रोध आपके 'कन्ट्रोल' में रहे। क्रोध आपको नहीं नचाये। आप क्रोध को नचा सको । यानी क्रोध करते समय भी जाग्रत रहना है। संसार के अर्थ- पुरुषार्थ और काम पुरुषार्थ में जब कभी क्रोध का सहारा लेना पड़े तब जाग्रत रहकर क्रोध का उपयोग करना है। आवश्यकता से ज्यादा जरा भी उपयोग न हो जाये, इस बात की संपूर्ण जागृति रहनी चाहिए।
डॉक्टर को जब दर्दी का ऑपरेशन करना होता है तब वह कितना सावधान रहता है? छूरी से पेट को चीरता है.... परन्तु यदि एक इंच का घाव करना है तो सवा इंच का नहीं करेगा। जहाँ चीरना होगा वहीं पर ही चीरेगा । चीरने के बाद रोग दूर करके शीघ्र ही घाव तो बंद कर देगा। चूँकि उसका लक्ष्य मरीज के रोगनिवारण का होता है । वैसा आपका लक्ष्य यदि दूसरों के दोष दूर करने का होगा, और क्षमा से अथवा समझाने से कार्य नहीं होता होगा और आपको क्रोध करना आवश्यक ही लगता होगा तो आप क्रोध करेंगे परन्तु उतना ही क्रोध आप करेंगे.... कि जितना आवश्यक होगा। आपको आवश्यकता का अंदाजा होना चाहिए।
For Private And Personal Use Only