Book Title: Dhammam Sarnam Pavajjami Part 2
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 283
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन -४७ २७५ लोग सोच सकते थे न ? परन्तु नहीं सोचा ऐसा, उन्होंने सोचा आन्तरिक शत्रुओं से प्रेरित होकर। न्याय-अन्याय का विचार मनुष्य अपनी बुद्धि से करता है। और बुद्धि तो कभी गलत निर्णय भी कर लेती है । बुद्धि के निर्णय को कभी अंतिम निर्णय मत मानो। अंतिम निर्णय धर्मशास्त्र के माध्यम से किया करो | बुद्धि के निर्णय को शास्त्र के माध्यम से जांचते रहो, परखते रहो । ९८ भाईयों ने शास्त्र का माध्यम तो नहीं लिया, चूँकि उस समय शास्त्र ही नहीं थे! परन्तु उन्होंने भगवान् ऋषभदेव के पास जाने का निर्णय किया और उनकी राय लेकर आगे बढ़ने के लिए सोचा। जहाँ भगवान ऋषभदेव विचरते थे वहाँ ९८ भाई गये। जाकर वंदना की और सारी बात कह सुनायी । भगवान् ने उनकी सारी बात सुनी और कहा : कब तक लड़ते रहोगे इस तरह ? : 'महानुभाव, तुम्हारे राज्य पर भरत अपना आधिपत्य स्थापित करना चाहता है इसलिए तुम सब भरत को शत्रु मान रहे हो और उससे युद्ध करने को तत्पर हुए हो। परन्तु तुम आगे सोचो, मान लो कि तुमने भरत को पराजित कर दिया, क्या दूसरा कोई शत्रु पैदा नहीं होगा? उसके साथ भी तुम लड़ोगे...उसको पराजित करोगे... क्या नया शत्रु पैदा नहीं होगा ? कब तक लड़ते रहोगे? किसके लिए लड़ते रहोगे ? जिस राज्य के लिए युद्ध करते रहोगे, वह राज्य क्या तुम्हारे साथ परलोक चलेगा? राज्य यहाँ रह जायेगा और तुम अनंत पापकर्म लेकर परलोक चले जाओगे....। पापकर्मों का फल दुःख है। तुम अनंत दुःख पाओगे । इस विश्व में कोई भी जीव किसी का भी शत्रु नहीं होता । शत्रु होते हैं हर जीवात्मा के भीतर पले हुए काम, क्रोध, लोभ वगैरह अनंत दोष । भीतर के शत्रुओं को पहचानो। जब तक भीतर के शत्रु बने रहेंगे तब तक दुनिया में तुम्हें शत्रुता की बुद्धि होती रहेगी। सारे अनर्थ भीतर के शत्रु करवाते हैं। जब तक जीवात्मा पर भीतर के शत्रुओं का प्रभाव छाया हुआ रहता है तब तक वह जीवात्मा दुःखमय संसार में परिभ्रमण करता रहता है । अनन्त दुःख, त्रास और वेदनायें भोगता रहता है। इसलिए तुम्हें मैं कहता हूँ कि तुम भीतर के शत्रुओं से लड़ो। इस मानव जीवन में ही आन्तरिक शत्रुओं से लड़ सकोगे और विजय पा सकोगे । ऐसी विजय पाओगे कि फिर कभी पराजय नहीं होगी । ऐसी अनन्त, अक्षय संपत्ति पा लोगे कि फिर दूसरी कोई संपत्ति पाने की इच्छा ही पैदा नहीं होगी । For Private And Personal Use Only

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